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संस्कृत साहित्य का इतिहास
कथाएँ पाई जाती है । भहुंत के स्थान पर बौद्ध जातकों का स्मारक साक्ष्य है, as for रूप से बतलाता है कि ईसापूर्व दूसरी शताब्दी में जन्तु कथाएँ गढ़ी लोकप्रिय थीं । पतञ्जलिकृत महाभाष्य में आप जोकोक्ति छ उल्लेखों से भी इसकी पुष्टि होती है ।
दूसरे तत्त्व के-नीति- शिक्षा तथ्य के बारे में यह विश्वास कहा जा सकता है कि पran का रचयिता नीति शास्त्र और अर्थread है । रचयिता का प्रतिज्ञात प्रयोजन राजा के निरक्षर कुमारों को अनायतया नीति की राजनीति, व्यवहारिक ज्ञान और सदाचार की -- शिक्षा देना है । यह बात असंशयित हो समझनी चाहिए कि पत्रकार को चाणक्य के ग्रन्थ का एवं राजनीति विषयक कुछ अन्य सन्दर्भों का पता था । साधारण जन्तु-कथाओं के साथ नीति शास्त्र के सिद्धान्तों का चतुरता पूर्वक मिश्रण करके श्रोपदेशिक जन्तु कथा-साहित्य की सृष्टि की गई जैसा कि हम पञ्चतन्त्र में प्रध्यक्ष देखते हैं, जो संस्कृत साहित्य के इतिहास में निरुपम है । यह अपने प्रकार का आप ही है ।
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१ [ पञ्चतन्त्र के एक संस्करणभूत ] हितोपदेश का अधोलिखित पद्म देखिए--- कथाच्छ लेन बालानां नीतिस्तदिह कथ्यते (भूमिका पद्म ८ )
अर्थात्-कथाओं के बहाने से बालको को नीति सिखाने वाली बातें इस ग्रन्थ में लिखी जाती हैं ।
भूमिका मे स्वयं पञ्चतन्त्र को नीति शास्त्र कहा गया है और कहा गया है कि जगत् के सारे अर्थ शास्त्रों का सार देख चुकने के बाद यह ग्रन्थ लिखा जाता
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२. भूमिका में लेखक ने नीति शास्त्र के नाना लेखकों के प्रमाण करते हुए कहा है :---
मनवे वाचस्पतये शुकाय पराशराब ससुताय । चाणक्याय च विदुषे नमोऽस्तु नयशास्त्रकतभ्यः ॥