________________
१६२ सत्कृत साहित्य का इतिहास ही कालिदास की कृति होने की प्रतिष्ठा प्राह करने का अधिकारी
(५७) घटकपर-इलके रचयिता का नाम भी वही है जो इस काव्य का है-~-घटकपर । इसमें कुल २२ पद हैं। घटकपर का नाम विक्रमादित्य के नौ रत्नों में लिया जाता है । अन्तिम पछ में कवि ने साभिमान कहा है कि यदि कोई मुमले अच्छे यमकालंकार की रचना करके दिखजाए तो मैं उसके लिए धड़े के ठाकरे में पानी भर कर लाने को तैयार हूँ। इस काव्य का विषय मेघदूत से बिल्कुल उलटा है अर्थात इसमें एक विरहिशी वर्षा ऋतु थाने पह मेव के द्वारा अपने पति को सन्देश भेजती है।
(५८) हाल की सतसई[सप्तशती ---यह महाराष्ट्रो प्रायत का प्रबन्ध काव्य है क्योंकि इसमें परस्पर सम्बद्ध सात सौ पद्य है। इसका कर्ता हाल या सातवाहन प्रसिद्ध है। कहा नहीं जा सकता कि सातवाहन या हाल इन पद्यों का रचयिता है या केवल संग्रहकर्ता है । यह सतसई इसवी सन की प्रारम्भिक शताब्दियों से सम्बन्ध रखती है परन्तु इसके लिए कोई विशिष्ट काज मिति नहीं किया जा सकता। हर्षचरित की भूमिका में बाण ने इसकी प्रशंसा की है।
यह सतसई सर्वसाधारण जनता का कोई काम नहीं है, कारण, इसकी रचना कृत्रिम तथा मनोयोग के साथ अध्ययन की हुई भाषा में हुई है। वर्णनीय विषयों में विविविधता विद्यमान है। यही कारण है कि इसमें गोप-गोपिका, व्याध-स्त्रियाँ, मालिन, हस्तशिल्पोजीवी इत्यादि विभिन्न श्रेणियों के स्त्री-पुरुषों के मनोरजक तथा विस्मयोत्पादक वर्णन है, प्रकृति के बोचन-लोमनीय दृश्य अंकित हैं जिनमें कभी-कभी शृङ्गाररस का संसर्श पाया जाता है तो कभी वे उससे बिल्कुल विवि देखे जाते हैं। कहीं-कहीं शिक्षाप्रद पद्य भी सामने आ जाते हैं। उदाहरणार्थ, एक प्रोषितपतिका निशम्मति से प्रार्थना करती है कि तू ने जिन किरया से मेरे जीवनबलम का स्पर्श किया है उन्हीं से मेरा भी स्मर्श करे । एक प्रवत्स्यगत