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बाण का हर्ष चरित
(७१) बाण का हर्षचरित । Pा का हर्षचरित सात शखाड़ी के पूर्वाई में लिखा गया था। इसमें पाठ अध्याय हैं जिन्हें इच्छूवास कहते हैं। कदि कृत कादम्बको के समान यह भी भपूर्ण है। कदाचित् मृत्यु ने कवि को बीच में ही उडा लिया हो। इस अन्य से हमें हर्ष के अपने जीवन बथा उसके कतिपर निकटतम पूर्वजों के सम्बन्ध में थोड़ी-सी बातें मालूम होती है। किन्तु इसमें कई महत्वपूर्ण घटनाओं को (जैसे: हर्ष के भाई की तथा
* के बहनोई गृहकमा की मृत्यु के बारे में बताने योग्य आवश्यक बातों को) अन्धकार में ही छोड़ दिया गया है। ऐतिहासिक अंश को छोड़कर सारा ग्रन्थ एक कल्पनामय कहानी है और इस का प्रारम्भ कवि के वंश की पौराणिक शैली को उत्पत्ति से होता है। उपरोदात में प्रसङ्गআয় খুঙ্কাল্পী তু হি বিশ্ব শাখা @ ঋকন্তু ক্রিয়া শঙ্কা है-जैसे, वासवदत्ताकार, मट्टारहरिश्चन्द्र, सातवाहन, प्रवरसेन, भार कालिदास, बृहत्कथाकार; अतः साहित्यिक इतिहास की दृष्टि से यह अन्ध विशेष महत्व रखता है। कथा और पाख्यायिका में मंद दिखबाने के लिए नाबानिकों ने इस ग्रन्थ को प्रादर्श प्राण्यायिका का नाम दिया है। 'भोजः समासभूयस्त्वम् एतद् गग्रस्य जीवितम् २ को मानने वाले
१ श्रालङ्कारिक कत कथा-श्राख्यायिका मेद केवल बालकोपयोगी है। उदाहरणार्थ, श्राख्यायिका के पद्य वक्त्र और अपरवक्न छन्दों में होते है परन्तु कथा में प्रार्या आदि छन्दी में। श्राख्यायिका के अध्यायों को उच्छवास श्रीर कथा के अध्यायों को लम्भ कहते हैं । "बातिरेका संज्ञा
याकिता. कहकर दण्डी ने इस परम्परा प्राप्त भेद को मिटाने की रुचि दिखलाई है। शायद यह कहना उचित होगा कि-आख्यायिका में ऐतिहासिक तथ्य होता है और कथा प्रायः कल्पनाप्रचुर होती है। २ समास भाइल्प में ही प्रोब रहता है यही गब का प्राय (काव्यादर्शन.)