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सस्कृत साहित्य का इतिहास उससे मिलने जाने के लिए सथ्यार हुअा। देवयोग से सभी एक दुर्धटमा घटित हो गई । वैशम्पायन श्राद्ध करके उस सरोवर के तट पर पीछे उहर गया था जिस पर महारदेता वप कर रही थी। बन्दापी ने लौटका उसे वहाँ न पाया तो वह च उसको लाश करने लगा। महाश्वेता से मिलने पर उसे मालूम हुआ कि किसी ब्राह्मण पवक ने महाश्वेता से प्रणय की याचना की थी जिसे उसने स्वीकार नहीं किया। जब युवक ने अधिक प्रामद किया त कुपित होकर महाश्वेता ने उसे तोते की योनि में चले जाने का शाप दे दिया। यह सुनते ही चन्द्रापीड़ निष्प्राण होकर पृथिवी पर गिर पड़ा। कादम्बरी वहाँ पहुँची तो महाश्वेता ले भी अधिक दुःखित हुई। एक आकाशवाणी ने कहा कि तुम चन्द्रापी का शव सुरक्षित रखो, क्योंकि एक शापयश इसके भाण निकले हैं । अन्त में तुम दोनों को तुम्हारे प्रियतमों की प्राप्ति होगी। ज्यों ही इन्द्रायुष ने सरोवर में प्रवेश किया त्यों ही उसके स्थान पर पुण्डरीक का सुहृद् कपिञ्जन प्रकट हुआ और उसने बताया कि चन्द्रापार चन्द्रमा का अवतार है तथा वैशम्पायन पुण्डरीक और हन्द्रायुध कपिञ्जा है।
मुनि से इस कथा को सुनकर मैंने अपने आपको पहचान लिया। मैं समझ गया कि मैं हो पुण्डरीक और वैशम्पायन दोनों हूँ। अब मैं चन्द्रापोह को हूँढने के लिए चल दिया; परन्त दुर्भाग्य से मार्ग में मुझे चारडाल कन्या ने पकड़ लिया और यहाँ धापके पास ले पाई।
कहानी के अगले भाग से हमें पता लगता है कि चाण्डाल कन्या पुरारीक की माता ही थी जिसने कटों से बचाने के लिए तोते का अपनी आँख के नीचे रख रक्खा था। शूद्रक में चन्द्रापीड का पारमा था। अब शाम के समय का अन्त आ गया था। उसी क्षण शूद्र का शरीरान्त हो गया। कादम्बरी की गोद में चन्दापी यो पुनर्जीवित हो उठा मानो वह किसी गहरी नींद से जागा हो । शीघ्र ही पुएबरीक भी सनसे आ मिला। दोनों प्रणयि-युगलों का विवाह हो गया और सर्वत्र