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सस्कृतसाहित्य का इतिहास शैली-लोकसंग्रह की शैली सरल, सनष्ट और विच्छित्तिशालिनी है। यदि शैली सरल न हो, तो अन्ध जोकप्रिय साहित्य में स्थान नहीं पा सकता। पात्रों का निर्माण स्पष्ट और निर्मल है। रचना के प्रत्येक अवयव में स्वाभाविकता का रंग है । ऐसा भासित होता है कि
शर्थमान स्थानों को लेखक ने बार देखा था। मूल का नैतिक कएठ-स्वर इस अन्य में अत्यन्तर उदात्त है । भाषा में प्राए हुए प्राकृत के अनेक शब्दों ने एक विशेषता उत्पन्न कर दी है। लेखक संस्कृत का पण्डित है और उसे लुड लकार के प्रयोग करने का शौक है।
(४) क्षेमेन्द्र की बृहत्कथामञ्जरी (१०६३-६ ई०)। ____ जैसा नाम से प्रकट है बृहत्कथामारी बृहत्कथा का संक्षेप है। क्षेमेन्द्र की लिखी रामायणमञ्जरी और भारतमञ्जरी के देखने से विदित होता है कि वह एक सच्चा संक्षेप लेखक था । उसकी बहत्कथामंजरी में कथासरित्सागर के २१३८८ पयों के मुकाबिले पर केवल ७५०० पद्य है। बहुधा संक्षेप-कला को एक सीमा तक वींच कर ले जाया गया है; इसीलिए मंजरी शुष्क, निरुदास, श्रमनोरम, प्राय: दुर्योध, और तिरोहितार्थ भी है और कथासरित्सागर को देखे बिना स्पष्टार्थ नहीं होती । कदाचित् ये मारियां पद्य-निर्माण-कला का अभ्यास करने के लिए लिखी गई थर्थो । यदि यह ठीक है तो निसर्गतः बृहस्कथा. मंजरी का जन्म कवि के यौवन काल में हुश्रा होगा। क्षेमेन्द्र केवल हक्षेप-लेखक ही नहीं है। अवसर आने पर वह अपनी वर्णन-शक्ति दिखलाने में प्रसन्न होता है और घटनाओं को वस्तुतः आकर्षक
और उत्कृष्ट शैली में वर्णन करता है। यह ग्रन्थ १०६३-६ में लिखा गया था। __ प्रतिपाद्य अर्थ की दृष्टि से बृहत्कथामंजरी कथासरित्सागर से अत्यन्त मिलती-जुलती है। दोनों प्रन्थ एक ही काल में एक ही देश
१ यह एक तथ्य है कि कवि का विश्वास था कि नवशिक्षित कवि को ऐसी रचना कर के काव्य-कला का अभ्यास करना चाहिए ।