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लोकप्रिय कथाग्रन्थ
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मैं और एक ही धार पर लिखे गए थे । ग्रन्थ के प्रकार खड जिन्हें लम्भक, (संभवतया वीर्य-कर्मों के अथवा विजय के बोसक ) कहा गया है । कथापीठ नामक प्रथम खम्भक में गुणाढ्य की बृहत्कथा की उत्पत्ति की कथा है; द्वितीय और तृतीय जम्भक में उदयन का और इसके द्वारा पद्मावती की प्राप्ति का इतिहास है। चतुर्थ जम्भक में मरवाह दत्त के जन्म का वर्णन है । श्रवशिष्ट जम्भकों में नरवाहनदत्त की अनेक प्रेम कहानियों का सदन मंजुका के साथ संयोग होने का और विद्यारों के देश का राज्य प्राप्त करने का वर्णन है । प्रन्थ में उपाख्यानों का जाल फैला हुआ है, जिसमें मुख्य कथा का धागा प्रायः उलझ जाता है। हाँ, कुछ उपाख्यान वस्तुतः रोचक और आकर्षक हैं । बुठे कम्भक में सूर्य-प्रभा का उपाख्यान है । इसमें कवि ने वैदिक उपाख्यानों को बौद्ध राख्यानों और लोक प्रचक्षित. विश्वासों के साथ मिलने का कौशल्य दिखलाया है । पन्द्रहवें लम्भक में महाभारत के एक उपाख्यान से मिलता-जुलता एक उपाख्यान आया है। इसमें नायक श्वेतद्वीप की विजय के लिए निकलता है । इस स्थल पर अलंकृत काव्य की शैली में नारायण से एक मर्म स्पर्शिनी प्रार्थना की गई है ।
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(८५) सोमदेव का कथासरित्सागर ( १०८१-८३ ) कथाfरसागर का अर्थ हैं— कथा रूप नदियों का समुद्र | लैको दे ने (बृहत् ) कथा की (कहानी रूप) नदियों का समुद्र माना 1 लैकोटे के अर्थ से यह अर्थ अधिक स्वाभाविक है। हमे काश्मीर के एक ब्राह्मण सोमदेव ने, क्षेमेद्र से शायद थोड़े ही वर्ष पश्चात्, लिखा था । यह आकार में क्षेमेंद्र के ग्रन्थ से तिगुना एवं ईलियर और श्रोडिसी के संयुक्त श्राकार से लगभग दुगुना है । यह ग्रन्थ काश्मीर के श्रमन्त नामक प्रान्त की दुःखित रानी सूर्यमती के मनोविनोदार्थं faखा गय था । राजा ने १०८१ ई० में आया कर ली थी और रानी उसकी चिता पर सती दो गई थी ।