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२२६ संस्कृत साहित्य का इतिहास मा बाद की शताब्दी) शिवदास' की रचना समझी जाती है। यह गय में है; और जिम के रचयिता का पता नहीं है वह मुख्यतया हेमेन्द्र के अन्य के आधार पर लिखा गया प्रतीत होता है। जम्मलद और बल्लभदास के संस्करण और भी बाद के हैं। अन्य को प्रात्यन्त बोकप्रियता का प्रमाण इसाले मिलवा है कि भारत की प्रायः सभी भाषाओं
इसका अनुवाद हो चुका है।
प्रम की रूपरेखा जदिल नहीं है। एक राजा किसी प्रकार किसी महात्मा से उपकृत हुपा महात्मा ने कहा कि जाओ उस श्मशान में पेड़ पर उलटी जटकती हुई लाश को ले पायो। राजा ने आज्ञा शिरोधार्य की ! परन्तु लाश में एक बेताल (तामा ) का निवास था, जिसने राजा से प्रतिज्ञा करानी कि यदि तू चुप रहे तो मैं तेरे साथ चजने को तैयार हूँ।
मार्ग में देताले एक जटिल कहानो करने के बाद रामाले उसका उत्तर पूछा । प्रतिभाशाली राजा ने तत्काल उत्तर दे दिया। राजा का उत्तर देना या कि बेताल तरकारु मन्तर हो गया ( विचारे राजा को फिर लाश को खाने जाना पड़ा। फिर पहली जैसी ही घटना हुई। इस प्रकार माना-प्रकार की कहानियाँ कही गई हैं। उदाहरण के लिए, एक कन्या की कहानी पाती है। वह एक राक्षस के पंजे में पड़ गई। उसकी जान बचाने के लिए उसके तीन प्रणथियों में से एक ने अपने कौशल से उस कन्या के गोपनार्थ एक स्थान बताया, दूसरे ने अपनी पाश्चर्यजनक शक्ति से उसके लिए विमान का प्रबन्ध किया और सीप्लरे ने अपने पराक्रम से उस राक्षस का पराभूत किया। अब स्वयमेव १ शालिवाहन कथा और कथाण व इन दो कथा सन्दर्भो का कर्ता भी शिवदास ही प्रसिद्ध है। प्रथम सन्दर्भ में गद्य और पद्य दोनों अठारह सर्ग है और इसके उपज व्य बृहत्कथामञ्जरी और तथासरित्सागर है। द्वितीय सन्दर्भ में मूर्ख, अतव्यसनी, शठ,प्रवचक इत्यादि की पैतीस रोचक और शिक्षाप्रद कहानिया हैं।