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२२४ संस्कृत साहित्य का इतिहास
सोमदेव का अन्य अठारह खण्डों में विभक्त है, जिन्हें क्षेमेन्द्र के प्रन्थ के वएडों के समान, लम्भक का नाम दिया गया है । इस अठारह खण्डों के चौबीस उपखण्ड हैं। इकका नाम है तरंग' | यह इस अन्य में एक नवीनता है। बाद में इसी को कल्हण ने भी अपना लियर है । पाँच खण्ड तक इस ग्रन्थ की रूपरेखा वही है, जो अहस्कथामजरी की, किन्तु भागे जाकर इसके प्रतिपाद्य अर्थ के प्रयास में कवि ने जो परिवन कर दिया है, उससे पढ़ते समय पाठक की अभिरुचि प्रक्षोयमाण रहती है और दो वएडो की संधि स्वाभाविक दिखाई देने लगी है। सोमदेव की कहानियाँ निस्सन्देह रोचक भार
आकर्षक है। उनमें जीवन है और नवोमता है, तथा उसके स्वरूप में अनेक-विधता है। इसके अतिरिक्त वे हमें लार, स्पष्ट और विच्छिति शालिनी शैली में भेंट की गई हैं। सारे २१३८८ पद्यों में से केवन ७६१ पचों का ही छंद अनुष्टुप नहीं है । इसमें लम्बे लम्बे समाम, किष्ट वाक्य-श्वना और अलंकारों का प्रयोग विडकुल नई पाया जाता। लेखक का उद्देश्य साधी-सादी कथा के द्रुत-वेश को निर्वाध चलने देना है । वह इस कार्य में सफल भी खूब हुआ है।
ये कहानियाँ बड़ा हो रोचक हैं। इनमें से कई एम्चतन्त्र के संस्क१ वृहत्कथामंजरी के उपखंडो का नाम है गुच्छ,।
२ परोपकार के महत्व का वर्णन करने वाला वक्ष्यमाण पद्य इसकी शैलो का उचम ननूना पेश करता है
परार्थफल अन्मानो न स्युर्मार्गमा इव ।
लपच्छदो महान्तश्चे ज् जोरिण्यं जगद् भवेत् ॥ अर्थात्-दूसरों को फल खिलाने वाले, धूप का निवारण करने वाले मार्ग में खड़े हुए बड़े-बड़े वृक्षा के तुल्य परोपकार करने वाले दूसरो का कष्ट निवारण करने वाले महा (पुरुष) न हो, तो जगत् पुराने जंगल (के समान निवास के अयोग्य) हो जाए ।