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यशूर कृत जावक
२३१ इसमें कथाकथन पूर्ण पत्रों से मिश्रित गद्य श्रा जाता है, तो कभी कभी कष-पद्धति पर जिले हुए पद्यों से प्रसाधित गद्य ।
ग्रन्थ का संग्रह-काळ ईसा की दूसरी शताब्दी के आस-पास माना जा सकता है | यह उपयुक्त अवदानशतक से नवीन है और २६२ है० से अच्छा खासा करके पुराना है, क्योंकि, इसी सन् में इसके शाहूज कान नामक एक मुख्य उख्याम का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ था | कहानियां रोचक हैं और विभिन्न रखों की उत्पत्ति करती हैं । अशोक के पुत्र कुणाल की कहानी वस्तुतः करुणरसपूर्ण है । कुणाल की सौतेली माता ने अपने पति के पेट में घुसकर कुणाल की श्रांखें निकलवा ली थीं।
(ख) आर्यशूरकत जातक माला |
जातक माला का अभिप्राय है जन्म की कथाओं का हार । श्रार्य शूर की जातक मात्रा में बांधिपत्र' के गौरवशाली कृष्यों की कथाओं का संग्रह है, अर्थात् इसमें गौरare se कार्यों का वर्णन है जो भाषी बुद्ध ने पहले जन्मों में किये थे । श्रार्यशूर की जातक माला जैसे पर्य वस्तु के लिए अश्वघोष के काव्यों की ऋणी है । यह ग्रन्थ और दोषिSearcदानमाला' दोनों एक ही माने जाते हैं। ये ईसाइयों की श्रीषदेशिक कहानियों से अधिक मिलता हैं, अतः ये ईसाइयों की उपदेश की छोटी छोटी पुस्तकों के समान बुद्ध धर्म के स्वीकृत सिद्धान्तों का प्रचार करने के लिए दिखी हुई मानी जाती हैं । अन्य में प्रन्थोई रय
१ जो व्यक्ति पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के मार्ग पर चल पड़ा है और सर्वोच्च बुद्ध की वस्था प्राप्त करने तक जिसे कुछ थोड़े से ही जन्म धारण करने पड़ गे, वह बोधिसत्व कहलाता है । २ यह विश्वास किया जाता है कि बुद्ध को अपने पूर्वजन्म की घटनाएं याद थीं। ३ दोनो नामों की एकता का विचार सबसे पहले राजेन्द्रलालमित्र ने प्रकट किया था ।