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शुक सप्तति
२२७ प्रश्न उठता है कि तीनों में से कौन कन्या को प्राप्त करे । राजा ने सत्काल उत्तर दिया, जिसने पराक्रम किया' । पच्चीसदी कहानी को सुनकर राजा उचर सोचने के लिए चुप हो गया । नत्र बेत्ताल के महामा रूप धारी साधु के कपट का भागडा फोड़ते हुए राजा को बह सारा उपाय कह सुनाया, जिसके द्वारा साधु राजा को मारना चाहता था। इसके बाद वेताल ने राजा को बच निकलने का मार्ग मी बतला दिया।
शिवदास के लिखने की शैली सरल, स्वच्छ और भाकर्षक है। भाषा सुगम और लावण्यमय है। श्लेष बहुत कम है। अनुप्रास का एक उदाहरण देखिए---
स धूर्जटिजटाजूटो जायतां विजयाय वः। यत्रैकलितमान्ति करोत्यद्यापि जाहवी ॥
(८७) शुकसप्तति। शुकसप्तति में सत्तर कथा संग्रहीत हैं। इनका वक्ता एक हाताने और श्रोत्री पति को सन्देह की दृष्टि से देखने वाली मैना है। किसी वधिक का पुत्र मदनसेन परदेश जाते समय घर पर अपनी पानी की देख-रेख करने के लिए एक तोते और एक कन्वे को छोड़ गया। ये दोनों पक्षी के रूप में धस्तुत: दो गन्धर्व थे। मदनसेन की भार्या धर्म च्युक्त होने को तर पार हो गई । कन्वे नै धर्मपथ पर बढ़ रहने की शिक्षा दी, तो उसे मौत की धमकी दी गई। चतुर तोते ने अपनी स्वामिनी की हाँ में हाँ मिलाते हुए उससे पूछा कि क्या तुम इस मार्ग में माने
महादेव को जटाशी का वह जाल, जिस पर गंगा अाज भी आधे भाग के पलित ( बुढ़ापे से श्वेत) हो जाने का भ्रम पैदा करती है, आपको विजयदायी हो। २ यह कोई श्राश्चर्य की बात नहीं है। पुनर्जन्म-वाद में पशु-पक्षी भी मनुष्यों के समान ही यथार्थ जीवधारी माने बावे हैं । बाण की कादम्बरी में कथा का वक्ता तोता है, यह इम पहले ही देख चुके हैं।