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सस्कृत साहित्य का इतिहास वह प्रतिपाय अर्थ के अनुसार बदलती रहने ली है । बहुत से प्रकरणों में बाण की भाषा पूर्ण सरल और श्रव है। ___ कादम्बरी का मूल स्रोत-स्थूल रूप-रेखा में कादम्बरी की कथा सोमदेव ( हैसा की १२वीं श० ) द्वारा लिखित कथासरित्सागर के नृप सुमना की कथा से बहुत मिलती जुलती है। कथासरित्सागर गुणान्यकृत बृहत्कथा का संस्कृतानुवाद है । बृहत्कथा अाजकल प्राच्या नहीं है, किन्तु यह बाण के समय में विद्यमान थी। इससे अनुमान होता है कि बाण ने बृहत्कथा से कथावस्तु लेकर कहा की दृष्टि से उसे प्रभाकशालिनी बनाने के लिए उसमें अनेक परिवर्तन कर दिये थे।
ऊव्व कालीन कथात्मक काव्यो पर बरा का प्रभावबाण के कथाबनाने काव्य के उच्च प्रमाण तक पहुँचना कोई सुगस कार्य नहीं था। जाण के बाद कथा-काब्य अधिक चमत्कारक नहीं है, किन्तु इनसे यह साफ झलकता है कि उन पर बाए का गहरा प्रभाव पड़ा । बाण के बाद के कयालक काव्यों में प्रथम उर देखनीय विजकमंजरी है । इसका को धनपाल (ईसा की १०वीं श०) धारा के महाराज के पात्र में रहा करता था। इस प्रन्ध में तिलकमंजरी और समरकेतु के प्रेम की कथा है। अन्तरात्मा (Spirit) और शैली दोनों को दृष्टि से यह अन्य कादम्बरी की नकल है। इस बात को स्वयं लेखक भी स्वीकार करता है।
बाण का ऋणी दूसरा प्रन्थ बचिन्तामणि है। इसका लेखक प्रोडयदेव नामक एक जैन था। इसी का उपनाम बादीमसिंह था । इस अन्य का प्रतिपाद्य विषय जीवनभर का उपाख्यान है। यही उपाख्यान जीवनधर बम्पू का भी विषय है। इसका काल अनिश्चत है।
१ इसके अन्य ग्रन्थ है-पैयलच्छी (प्राकृतभाषा का कोष, रचनाकाल ६७२-३ ई०) और ऋषभ पंचाशिका (प्राकृत भाषा में पचास पद्य) जो किसी जैन मुनि की प्रशस्ति है।
२ साहित्य के और भी अग हैं जिनमें गद्य-पद्य का मिश्रमा रहता है; परन्तु उनमे पद्य या तो औपदेशिक होते हैं या पक्ष्यमाण कहानी का