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संस्कृत साहित्य का इतिहास
धर्मदास नामक एक और समालोचक ने उसके साहित्यिक कृतित्व को और store से कहा है । वह कहता है :
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रुचिrस्वरवता रसभाववती जगन्मनो हरति ।
तत् किं ? तरुणी ! नहि नहि वासी बाणस्य मधुरशीतस्य ' ॥ जयदेव ने और भी आगे बढ कर कहा है : --- "हृदयवसतिः पचबाणस्तु बाणः " [ कविता कामिनी के ] हृदय में बसने वाला बाण मानो काम है। अन्य समालोचकों ने भी अपने अपने ढंग से बाय के साहित्यिक गुणों की पर्याप्त प्रशंसा की है ।
बाण में वर्णन की, माननीय मनोवृत्तियों के तथा प्राकृतिक पदार्थों के सूचन पर्यवेक्षण की एवं कान्त्रोपयोगिनी कल्पना को आश्चर्यजनक शक्ति है । केवल प्रधानपात्र ही नहीं, छोटे-छोटे पात्रों का भी विशद चरित्र-चित्रण किया गया है । नायिकाओं के रागात्मक तीन मनोभाव और कन्योचित लज्जालुता के साथ प्राणियों के संवेदन और नायकनायिका की अन्योन्य भक्ति का वर्णन बढ़ो उत्तम रीति से किया गया है । एक सच्चा प्रणयी अपने प्रणयपात्र से पृथक होने की अपेक्षा मरना अधिक पसन्द करता है । हिमालय पर्वत के सुन्दर दरयों, अच्छोद सरोवर और अन्य प्राकृतिक पदार्थों का सुन्दर वर्णन कवि की साहि fore a का परिचय देता है। मुनियों के शान्तिमय और राजाश्र
पहले समय में अधिक प्रागल्भ्य प्राप्त करने के लिए शिखण्डिनी शिखण्डी बन कर अवतीर्ण हुआ था वैसे ही अधिक प्रौढि प्राप्त करने के लिए सरस्वती बाग बन कर अवतीर्ण हुई थी ।
१ सुन्दर स्वर, सुन्दर वर्ण और सुंदर पदों वाली तथा रसमयी तथा भावमयी जगत् का मन हरती है।
बताओ क्या है ? वरुणो है ।
न, न । मधुर प्रकृति वाले बारा की वाणी ।