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सस्कृत साहित्य का इतिहास दृष्टि से यह ग्रन्थ उपयुक्त दोनों चम्पुओं से बहुत उत्कृष्ट है । कथा प्राय: सायन्त रोचक है । लेखक का उद्देश्य जैन सिद्धान्तों को लोकप्रिय रूप में रख कर उनका प्रचार करना प्रतीत होता है। यही कारण है कि इस अन्य में हम देखते हैं कि नृप मारिदत्त, कथा का नायक, जो कुल देवी चण्डमारी देवता के सामने सम्पूर्ण सजीव पदार्थों के जोड़ों को, जिनमें एक बालक और बालिका भी सम्मिलित थी, बलि देना चाहता था, अपनी प्रजा के साथ अन्त में जैनधर्म ग्रहण कर लेता है। इसके कुछ पद्य वस्तुतः सुन्दर हैं । जैसे
प्रवक्ताऽपि स्वयं लोकः कामं का परीक्षक ! रसपाकानभिज्ञोऽपि भोका वेत्ति न कि हमम् ॥ कदाचित् उन्क शनाब्दी का ही एक और जैन कथात्मक काम्य हरिचन्द्र कृत जीवनधर चम्पू है । इसका अाधार गुणभन्न का उत्तर पुराण है। इसकी कहानी में रख का नाम नहीं ।
[भोज के नाम से प्रसिद्ध ] रामायण उम्पू, अनन्तकृत भारतचम्पू, सोडूढजकृत (१०८० ई०) उदयसुन्दरीका इत्यादि और भी कुछ स्वम्पू अन्ध है, परन्तु वे सब साधारण होने के कारण यहाँ परिचय कराने के अधिकारी नहीं हैं।
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१ स्वयं अपने भावो का सम्यक् प्रकाश न कर सकने वाला व्यक्ति भी काव्य का परीक्षक हो सकता है; क्या स्वाद भोजन बनाने की क्रिया न जानने वाला भोक्ता भोजन के स्वाद को नहीं जानता।
२ इसका पक्का निश्चय नहीं कि यही ( २१ सर्गात्मक ) धर्मशर्माभ्युदय नामक जैन काव्य का भी कर्ता है ।