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सस्कृत साहित्य का इतिहास
होता है जो कथा का उपनायक है । कथा की नायिका कादम्बरी क माम तो हमें बाधा अन्य एढ़ जाने के बाद मालूम होता है। कहानी का श्रोता नृप शूदक है जो एक अनावश्यक पात्र प्रतीत होता है और कथा से जिसका नाम निकाल देने से कोई हानि पहुंचती प्रतीत नहीं होती; परन्तु अन्त में यही राजा कथा का मुरूम नायक चन्द्रापीड निकल पड़ता है जो शाप-वश उस जीवन में गया हुश्रा है। इस प्रकार बड़ी कुशलता से कथा की रोचकता अन्त तक अखण्ड रखी गई है। संक्षेप में कथा यों है:
शूद्धक नामक एक राजा के दरबार में कोई चाराडाज बन्यो एक दिन एक तोता बाई ! राजा के पूछने पर तोते ने अपनी दुःखभरी कथा उसे सुनाते हुए कहा-मेरी माता की मृत्यु मेरे जन्म के समय ही हो गई थी और कुछ ही समय पश्चात् मेरे पिता को शिकारियों ने पकड लिया । जाबालि मुनि के एक शिष्ठ ने मुझे सिर्जन बन में पड़ा हुभा देखा तो दयाई होकर बठा लिया और अपने गुरु के धाश्रम में ले गया। शिष्यों के पूछने पर जाबाजि मुनि ने मेरा पूर्वजन्म का वृत्तान्त उन्हें इस प्रकार सुनाया
कमी उज्जैन में तारापीर मामक एक धर्मात्मा राजा राज्य करता था। उसकी रानी विलासवती राजा के सम्पूर्ण अन्तःपुर में सब से अधिक गुणशालिनी देवी थी ! राजा का मन्त्री शुकनास बड़ा बुद्धिमान् था। बहुत समय बीतने पर महादेव की कृपा से राजा के एक पुत्र हुधा जिसका नाम चन्द्रापीड रक्खा गया । चन्द्रापीड का समवयस्क वैशम्पायन नामक सन्त्री का पुत्र था। दोनों कुमारों का पालन-पोषण साथ साथ हुश्रा और वे ज्यों-ज्यों बढ़ते गए स्यों त्यो उनका सौहार्द घनिष्ट होता गया; यहाँ तक कि वे एक दूसरे के बिना एक पल भी नहीं रह सकते थे। उनकी शिक्षा के लिए एक गुरुकुल की स्थापना की गई, जहाँ उन्होंने सोलह वर्ष की आय में ही सारी विद्याओं में पारङ्गतमा प्राश कर जी। शिक्षा समाप्ति पर शुकनाल ने राजकुमार को राजोपयोगी