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गद्य-काव्य और चम्पू
२०५ देखिए --नायकेन कीतिः, कीर्या सब सागसः, सागरः कृतयगादिराजचरितस्मरणम् .. ।
शहीरानुसार अवयवकल्पना एक प्रकार से शैक्षी को नींव होती है। वासदत्ता में इसका इतना अभाव है कि उसका उल्लेख किये बिना रहा नहीं जा सकता । चरम सीमा को पहुंचाए बिना कवि ने किसी भी प्रसङ्ग को नहीं जाने दिया है। निदर्शनार्थ, किसी घटना के वर्णन में प्रत्येक सम्भव विवरण दिया गया है, यदि इतना देना अपर्याप्त प्रतीत हुश्रा है तो इसकी पूछ से उपमा के पीछे उपमा और शेष के पीछे श्लेष का तांता बांध दिया गया है। कहीं उत्साह दिलाना अमोष्ट हा. तो एक ही बात अनेक रूप से बारबार दोहराई गई है । इस दोष का कारण कवि की मति की तीय स्फूर्ति तथा बहुज्ञता है। अन्य कहानियों के समान इसमें कथा के अन्दर कथा भरने की विशेषता है।
) वारण की कादम्बरी। बाण की कादम्बरी हमें कई प्रकार से रुचिकरी प्रतीत होती है। एक तो हमें इसकी निश्चित तिथि मालूम है। अत: भारतीय साहित्य के और भारतीय दर्शन के इतिहास में यह एक सीमा का निर्देश कर सकती है। दूसरे यह हमारे लिए लौकिक संस्कृत के प्रमाणीमूत गयोदाहरण का काम देती है। तीसरे यह भारतीय सर्वसाधारण का ज्ञान बढ़ाने वाली लोकप्रिय कहानी है।
बाण अपने अन्य ग्रन्थ के समान कादम्बरी को भी अपूर्ण छोड़ गया था । सौभाग्य से उसके पुत्र भूषण भट्ट ने इसे समाक्ष कर दिया था । कथा-वस्तु कुछ जटिल सी है। इसमें कथा के अन्दर कथा, उसके भी अन्दर और कथा पाई जाती है। कथा का प्रधान भाग एक तोते के मुंह से कहलवाया गया है। यही तोता अन्त में पुण्डरीक मुनि सिद्ध
१नायक ने यश, यश ने सात समुद्र, सात समुद्रो नै सतयुग आदि में हुए राजाओं के चरित का स्मरण [ प्राप्त ] किया !.