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गद्य-काव्य और चम्पू १६ कहा जाता है कि शायद इसका तीसरा ग्रन्थ छन्दोविक्ति हो, जिसका उल्लेख इसने अपने काव्यादर्श में किया है, किन्तु इसका कुछ निश्चय नहीं कि यह शब्द किसी वशिष्ट ग्रन्थ छा परामर्श करता है या अलङ्कार के सामान्य शास्त्र का। इसी प्रकार काव्यादर्श में कलापरिच्छेद का भी उल्लेख पाता है। यदि यह अन्य दण्डी का ही होता तो एक प्रथक अन्य न होकर यह काव्यादर्श का ही एक पिछला अध्याय होता। यह तो निश्चय है कि दण्डी अवन्तीसुन्दरीकथा का, जिसको यस्नायात शैली सुबन्धु और बाणा के अन्यों की शैली की स्पर्धा करती है, रचयिता
वैयक्तिक जीवन---- राडी के वैयक्तिक जीवन के बारे में खास करके कुछ मालूम नहीं है। दशकुमारचरिता के प्रारम्भिक पत्रों से किसी किसी ने यह धारणा की है कि शायद सह वैष्णव' था; किन्तु इस धारणा में इस बात की ओर ध्यान नहीं दिया गया कि पूर्वपालिका (दशकुमार की भूमिका ), जिसमें यह पय प्राता है, विद्वानों की सम्मति में दण्डी की रचना नहीं है। हाँ, इसना सम्भव प्रतीत होता है कि यह दाक्षिणात्य और विदर्भ देश का निवासी था। यह वैदर्भी शेति की प्रशंसा करता है; महाराष्ट्री भाषा को उत्तम बतलाता है; कलिङ्ग,
आन्ध्र, चोल देशों और दक्षिण भारत की नदियों का नाम देता है, और मध्यभारत के रीति-रिवाजों ने खूब परिचित है। उदाहरण के लिए दशकुमार चरित में विश्चत की कया में विन्ध्यवासिनी देवी का वर्णन देखा जा सकता है।
काल-दण्डी का काल भी बड़ा विवादास्पद विषय बला भा रहा है। दशकुमार चरित की अन्तिम कथा में, जिसे विश्रुत ने सुनाया है, भोज वंश का नाम आया है। इस श्राभ्यन्तरिक साक्ष्य पर विश्वास करके
१ देखिये, एम. आर० काले द्वारा सम्पादित दशकुमारचरित, पष्ठ ४४ (इंग्लिश भूमिका)।