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संस्कृत साहित्य का इतिहास है। 'एकदमपाठ से यह बात जाजी आ सकती है कि दोनों जातियों का प्राध्याथिका माहित्य बाह्यरून और अन्तमा दोनों की दृष्टि से एक दूसरे मे सर्वथा निन्न है' " संस्कृत के गद्य-काय (आख्यायिकासाहित्य ) में श्रम-निष्पादित वर्णन पर बल दिया जाता है तरे यूनानी मद्य-काव्य में मारा ध्यान कहानी की ओर लगा दिया जाता है। इस प्रकरण को समाप्त करते हुए हम कह सकते हैं कि भारतीय और यूनानो गय-काव्यों का जन्म परस्पर बिल्कुल निरपेक्ष रूप से होकर दोनों का पालन-पोषण की अपनी अपनी सभ्यता तथा साहित्यिक रूदियों के बीच में हुआ।
(७७) दण्डी इसके अन्य ----परम्परा के अनुसार दशही तीन ग्रन्थों का रचयिता माना जाता है।
दशकुमार छरित ( गद्य में कहानी) और काव्यादर्श (अलङ्कार का अन्य ) निस्सन्देह इसी के हैं। उत्तर्गत ग्रन्थ में इसने जिन नियमों का प्रतिपादन किया है पूर्वाक ग्रन्थ में उन्हीं का स्वयं उल्लञ्चन भी कर डाला है। शायद यह इसलिए हुछा है कि 'पर उपदेश शाल बहुतेरे, से प्राचारहि ते ना न घनेरे। इसक तीसरे प्रन्थ के बारे में लोगों ने भनेक कच्ची कच्ची धारणाएं की है। मृच्छकटिक और काव्यादर्श दोनों में समानरूप से श्र.ए एक पद्य के आधार पर निस्चल ने कह डाला कि दण्डी का तीसरा अन्य पृच्छकटिक होगा, किन्तु मास के अन्यों की उपलब्धि होने पर मालूम हुआ कि वही पच चारुदच में भी आया है. असा दण्डी ने वह वश्च चारुदत से ही लिया होगा। यह भी कहा जाता
१ देखिये ने (Gray) सम्पादित वासवदत्ता, पृष्ठ ३. २ देखिये राजशेखर का निम्नलिखित पध
प्रयोऽग्नवस्त्रयो वेदास्त्रयो देवास्त्रयोगुणाः । भयो दरिडप्रबन्धाश्च त्रिषु लोकेषु विच ताः ॥