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संस्कृत साहित्य का इतिहास
গুলা বন্ধ । জাসুফিয়া কা শ্লষ্ট প্রশ্ন ফাঙ্গ স্থ इसकी तथाकथित गौड-विजयों का उल्लेख कर सकते हैं। स्वयम्बर का वर्या कालिशम्ब की शैली का है और सुन्दर है। किन्तु यह वास्तविक
और ऐतिहासिक प्रतीत नहीं होता। छोटे-छोटे अवनियों का नाम प्रायः बोल दिया गया है। सारी कविता का स्वरूप इतिहास-जैसा कम, काब्य जैसा अधिक है। इसीलिए इसमें वसन्त का, जय-विहार का, वर्षानियों के आगमन का और शरद् के ग्रामोद्य-प्रमोदों का विस्तृत वर्णन है। पाहवमल और विक्रमादित्य दोनों नायक सौन्दर के उच्चतम श्रादर्श और शेष सब बुरे हैं । इसमें १८ सर्ग है। अन्तिम वर्ग में अधि ने स्वजन्मসুমি ফাৰ্মীৰ ঐ হাঙ্গী স্কা স্কুণ্ডু ঘন স্ত্রী স্বাসঘাম বিশ্ব ই जिममें अपने आप को इसने घुमकर पंडित लिया है। यह व्याकरण के अनुभवी विद्वान् ज्येष्ठकाश का पुत्र था । यह स्वयं वेद का जिद्वान और महाभाष्य तथा अलंकार-ग्रंथों का अध्येता था। यह एक देश से दूसरे देश में घूमता-वामता विक्रमादित्य षष्ठ के दरबार में पहुंचा और बहीं रहने लगा । यहाँ यह विद्यापति की उपाधि से विभूषित किया गया।
विलक्षण की गिनती इतिहास के गम्भीर सेवकों में की जा सकती हैं । इसके उक ग्रंथ का काल १०८ ई० मे पहले माना जाना उचित है, कारण कि--
(1) यह विक्रमादित्य के दखिया पर श्राक्रममा के सम्बन्ध में, जो १०८८ में हुआ बिल्कुल चुप है।
(२) क्योंकि इसमें काश्मीर का हर्षदेव युवराज कहा गया है, महारा नहीं । बा महाराज 10 ई में बना था।
शैली--शिवहरण की शैली वैदी है और अइ प्रसादगुम पूर्व विषण का सस्कृष्ट बेखक है। उदाहरण के लिए देखिए माहवामा अन्तिम क्षों का वर्षमा :----