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२८४ संस्कृत साहित्य का इतिहास दृष्टि का पता देती है, जिसके द्वारा कहा अपने पात्रों का चरित्र चिन्त्रिी कर सकता था। यह पहला शैव-सम्प्रदायी था किंतु शेव-दर्शन की तानिय प्रक्रियाओं की ओर इसकी अभिरुचि नहीं थी । यह अहिशु का का था और बौद्ध धर्म' तथा इसके अहिसा सिद्धान्त का बड़ा भादर
कल्या ऐतिहासिक महाकाव्यों (रामायण, महाभारत का महाविद्वान् था । इसने महाकाव्यों और बाण के द्वचरित जैसे ग्रंथों का विस्तृत अध्ययन किया था। इसका बिल्हण ले धनिष्ठ परिचय थे, और कलित ज्योतिष के अन्थों का इसे अच्छा झान्द था : इलम सन्देह नहीं कि काश्मीर का विस्तृत इतिहास लिखने का जो काम इसने हाथ में लिया था वह बड़ा काठन काम था। इस मार्ग में दुलं बाधाएं यो । इमक लगाय के पहले हा राजवंश के पुराने डिथि-पत्र या नो नष्ट हो चुके थे, या इनमें अविश्वसनीय बाते और अशुद्ध तिथियाँ उपलब्ध होली थी । कन्हण में ऐतिहासिक रुचि पार बुद्धि थी, और इलने प्राप्त सारे साधनों से पूर-पुरा लाभ उठाया । किन्तु पुराने इतिहास को इसकी दी हुई तिथियाँ सही नहीं हैं । उदाहरण के लिए. राजतरक्षिणी में अशोक की तिथि अाजकल की प्रख्यात तिथि से एक हजार साल पहले की मिलती है। कादया स्त्र कहता है कि मैंने धारद पुराने अन्यों है जो सब अब लुप्त हर चुके हैं) और नीलमत पुराण को देखकर यह ग्रन्थ लिखा है । इसने जनश्रुति-विश्रुत प्राचीनतर नृपों को संख्या वावन बताकर नीलमत के श्राधार पर पहले चार का नामोल्लेख किया है।
१ सच तो यह है कि इससे बहुत पहले हो बौद्धधर्म नै हिन्दू-धर्म के साघ मेल कर लिया था। क्षेमेन्द्र ने बुद्ध को विष्णु का एक अवतार मान कर उसकी स्तुति की थो, और कल्हण के समय से पहले ही लोग 'विवाहित' महन्तो को जानते थे। ... २ बराहमिहिर कृत वृहत्संहिता के विषय में किए हुए इसके उल्लेखों को देखिए।