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कल्हण की राजतरंगिणी
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। इसके रचयिता के नाम का पता नहीं । शैली विल्या की है सका क्लेख जयरथ ने अपनी अलंकार विमर्शिनी में (१२०० ) किया है । और इस पर काश्मीर के जोनराज की ( १४४८ टीका है स
इसका लेखक काश्मीरी ष्टी हो ।
(३) सन्ध्याकर नन्दी के रामपाल चरित्र में बंगाल के रामपाल के ( १०८४ - ११३०) कौशलों का वर्णन है ।
(४) (काश्मीरी ) कल्हण का सोमपाल विश्वास सुस्सल द्वारा पराजित किये हुए नृप सोमपाल विलास की कथा सुनाता है मङ्ग ने इस कवि को काश्मीर के नृप प्रकार की सभा का सदस्य लिखा है । (५) शम्भुकृत राजेन्द्र कर्णपुर काश्मीर भूराज हर्षदेव की प्रशस्ति हैं !
( ६-६ ) मोमेश्वरदस द्वारा ( ११७३-१२६२ ) रचित कीर्तिकौमुदी और सुरथोत्सव, अरिसिंह द्वारा (१३ वीं शताब्दी ) रचिन सुकृतसकीन और सर्वानन्द द्वारा ( १३ वीं शताब्दी ) रोचन जगदुचरित न्यूनाधिक प्रशस्तियां दी हैं जो यहां विस्तृत परिचय देने के योग्य नहीं हैं ।
(२०) अन्त में यहां काश्मीर के उन लोगों के नामों का उल्लेख करना सूचित प्रतित होता है जिन्होंने राजतरंगिली को पूरा करने का काम जारी रक्खा । जोनराज ने ( मृत्यु १४५६ ) उसके शिष्य श्रीर ने और शिवर के शिष्य शुक ने राजतरंगियो की कथा को काश्मीर को अकबर द्वारा अपने राज्य में मिलाए जाने वक आगे बढ़ाया, किन्तु इनकी रचना में मौलिकता और काव्य-गुण दोनों का अमाव
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