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संस्कृत साहित्य का इतिहास भारतीय आकार-शास्त्रियों के मत मे बहाण संस्कृत में गाय का एक सर्वोत्कृष्ट लेखक है। कहा जाता है कि यह पंचाली वृत्तिका, जिसमें शब्द
और अर्थ दोनों का महत्व एक जैमा है, सबसे बड़ा भक्त है। कविराज ने इसे । और सुबन्धु ] को बकोक्ति ( श्लेष) की रचना में निरुपम कहा है। ध्वनि (व्यंजनापूर्ण कृति) की दृष्टि से यह सर्वोत्तम भाना जाता है। प्रभावशाली वर्णनों का तो यह तितम कृतिकार है। इसके वाक्य कमी कमी बड़े खम्ब्बे होते हैं। उदाहरण के लिए, पाठ उत्रास में एक वाक्य छाले के पांच पृष्ठों तक और एक और चाक्य तीन पृष्ठों तक चला गया है। तक अन्त तक नहीं पहुंच जाता, पाठक को अर्थ का निश्चय नहीं होता। ऐसी शैली श्राधनिक पाश्चात्यों को आकर्षक नहीं लग सकती । वैवछ ने कहा भी है ...."बाण का गद्य एक ऐया भारतीय जंगल है जिसमें आगे बढ़ने के लिए छोटी-छोटी झाड़ियों को काट डालना श्रावस्यक है; इस जंगल में प्रसिद्ध शब्दों के रूप में जंगली जानवर पथिक की घात में बैठे रहते है।" कीथ जी कहता है कि शैलीशार की दृष्टि से बाण के दोषों पर अफलोल होता है। ' इसमें सन्देश नहीं कि बाण का पुराणाध्ययन पहुत बढ़ा चढ़ा था और इसकी कल्पना की उड़ान भी बहुत ऊँची थी। इसे श्लेष का बड़ा शौक था और इसकी रचना में दूरविलन्त्री परामशों (Allusions) की भरमार है। इसके वर्णन विशद, स्वच्छ चित्रोपम हैं जो पाठक के अदय में एक दम का चिपकते हैं। किसी उदाहरण के उस्लेख के तौर पर हम पाठक को प्रमाकरवर्धन की मृत्यु का वर्णन देखने के लिए कहेंगे।
(७२) पद्मगुप्त (या, परिमल) १००५ १० का नवसाहक चरित।
यह बात इसकी दूसरी रचना अर्थात् कावम्बरी में अधिक देखने