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१६० संस्कृत साहित्य का इतिहास सकता है। इन काव्यों (Lyrics) में ऋषियों (Seers) के नियाज उद्गार भरे हुए हैं जो शयः प्रकृति की उपकारिणी शक्तियों के वशीभूत होकर प्रकट किए गए हैं। ये मन्त्र बहुत सोच कर चुने हुए छहों में रचे गए हैं जिनमें प्राय: अन्यानुप्रास भी पाया जाता है और जो गाए भी जा सकते हैं।
(२) भक्तिरसमय संगीत-काव्य-इस भेद के उदाहरण प्राधिक्य के साथ बौद्ध तथा उपनिषद् ग्रंथों में पाए जाते हैं जिनमें भवीनधर्म की प्रालि होने पर हृदय का विस्मय सहसा संगीर-काव्य के पथ के रूप में प्रकट हो जाता है। हायर ___३) ऐतिहासिक ( Epic ) या भावुक (Sentimental ) संगीत काव्य-इस जाति के उदाहरण महाभारत में और उससे भी अधिक रामायण में प्रकृति-वर्यानों में उपक्षध होते हैं।
(४) रुपक-माहित्य का विविका शृंगाररसपूर्ण संगीतकास अशी में वे लोक पाते हैं जो रूपकों के पात्रों द्वारा प्रेमादि
का वर्णन करने के लिए बोले जाते है ! यह श्रेणी उस सोपान का काम देती है जिस पर पैर रह कर भक्तिरस के संगीव-काव्य से या ऐतिहासिक संगीच-काव्य में उठकर महरि और प्रमह जैसे अकालीन कवियों की श्रेणी में प्रवेश किया जाता है। इन कवियों के हाथों में पहुँच कर संगीत-काव्य साहित्य का एक परतन्द्र अंगन रह कर स्वतंत्र अङ्गी बन गया है।
(५) ऊर्धकालीन कवियों का संकीण शृङ्गार म्ममय या रहस्यमय संगत-काव्य-इस कोटि में पहुँच कर संगीत-काव्य में शृङ्गाररस और धार्मिक भावना का ऐसा सम्मिश्रणा पाया जाता है जिसमें यह मालूम करना दुस्साध्य है कि लिखते समय लेखक में रति का अतिरे कथा अथवा भक्ति का । भक्तिरस वाले या ऐतिहासिक संगीत काव्य के साथ इसकी तुलना करके देखते हैं, इसमें शृङ्गारस की या प्रकृति के अथवा किसी स्त्री के सौंदर्य के प्रत्युक्तिपूर्ण वर्णनों की अधिकता पाते