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सगीत-काव्य के कर्ता
हैं। ये संगीत-काव्य कवियों की महतो निरीक्षण सम्पति तथा तीन अनुभूति के साक्षी हैं। इनमें से कई प्रतिपाय अर्थ की बाल कल्पना की दृष्टि से सुषमाशाली दुर्लभ रत्न है । मानवीय जीवन तथा प्रेम-तत्व को
भिव्यक्त करने के लिए इनमें चात्तक, चकोर, चक्रमा इत्यादि नाना नवरों को पक्का-श्रोता बनाया गया है। इस सारे संगोस-काव्य में स्शुपक्षी, लता-पादप इत्यादि द्वारा बन्छ। मास्वपूर्ण काम लिया गया है
और कविकृत उनका वर्णन बड़ा ही धमत्कारी है । इस अध्याय में हमारे बयान का क्षेत्रफल उकालीन उन्हीं कवियों तक सीमित रहेगा जिन्होंने संत-काव्य का साहित्य-संसार में स्वतन्त्र अङ्गी स्वीकार करके कुड़
संगीत-काव्य के कर्ता (५६)शृङ्गारतिसक-इसका कर्ता कालिदास' कहा जाता है, परंतु इसका प्रमाण नहीं मिलता है। इसमें केवल तेईस । २३) पध है। इसका कोई कोई पद्य वस्तुतः बड़ा ही हृदयङ्गम है । एक नमूना देखिए :
इयं व्याधायते बाला रस्याः कार्मुकायते ।
कटाक्षाश्च शरायन्ते मनो मे हरिणामसे ॥ फिर देखिए । कवि को शिकायत है कि सुंदरी के अन्य अवयवों का निर्माण मृदुल कमलों से कर के उसके हृदय की रचना पाषाण से क्यों की गई : -
इन्दीवरेया नयनं मुखमम्बुजेन कुन्देन दन्तमधरं नवपल्लवेन। अंगानि चम्पकदलैः स विधाय वेधाः कांते ! कथं घटितवानुपलेन चेतः ।
काजिदास के नाम से प्रसिद्ध एक और संगीत-काग्य है---रामखकाव्य, परन्तु यह पूर्वोक काव्य से अत्यन्त अपकृष्ट है और निबर
१. कालिदास के सुप्रसिद्ध संगीत-काव्यो मेघदूत और अतुसंहार के लिए खंड २० वा २१ देखिए ।