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औपदेशिक (alfareक) काव्य
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शाङ्ग घर के अपने बनाए हुए भी हैं। सूफिसन्दर्भों में यह सब से अधिक महत्वशाली है ।
(५) सुभाषितावले - इसका सम्पादन १६वीं शताब्दी में वल्लभदेव ने किया था। इसमें १०१ खण्डों में ३५० कवियों के ३५२७ पद्य सकक्षित हैं। एक सुभाषितावजी और है । उसका संग्रहकर्ता श्रीवर है जो जोनराज का पुत्र या शिष्य था । ये जोनरात और श्रीवर वही जोनराज और श्रीवर हैं जिन्होंने कल्हण के बाद उसकी राजतरंगिणी के लिखने का काम श्रारम्य रखा था । यह दूसरी सुभाषितावली १२वीं शताब्दी की है और हमें ३५० से भी अधिक कवियों के रखोक संकलित है।
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पदेशिक (नीतिपरक ) काव्य
संस्कृत साहित्य में औपदेशिक काव्य के होने के पर्याप्त प्रमाण मिलते हैं। इसके प्राचीनतम चिह्न ऋग्वेद में पाए जाते हैं। उसके पश्चात् ऐतरेय ब्राह्मण में शुभः शेप के उपाख्यान में इसके अनेक उदाक्षरण उपजन्च होते हैं । उपनिषदों में, सूत्रग्रन्थों में, मन्वादि राजधर्म शास्त्रों में और महाभारत में मोति के अनेक वचन मिलते हैं। पञ्चतन्त्र और हितोपदेश तो ऐसे नीनों से भरे हुए हैं जो बिल्ली, चूहे, गधे, शेर इत्यादि के मुँह से सुनने पर बड़े विचित्र प्रतीत होते हैं। यह बात हम पहले ही कह आए हैं कि भर्तृहरि का नीतिशतक चौपदेशिक (नीaिves) काव्य में बड़ा महत्वपूर्ण सन्दर्भ है और यह भी संकेत किया जा चुका है कि खदाहरणों से भरे पड़े हैं । नीतिविषयक कुछ अन्य नीचे दिया जाता है |
सूक्ति सन्दर्भ ऐसे ग्रन्थों का परि
(१) चाणक्य नीतिशास्त्र --- (जिसे राजनीतिसमुचय, चाणक राजनीति, वृद्ध चाणक्य हस्यादि कई नामों से पुकारते हैं) । इसक रचयिता चन्द्रगुप्त का सचिव चाणक्य (ओ अर्थ - शास्त्र के रचयित!