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संस्कृत साहित्य का इतिहास
पूर्ण विश्वास नहीं किया जा सकता क्योंकि उनमें देखा जाता है। एक सूक्ति-सन्दर्भ में एक पद्य एक दिया हुआ है तो दूसरे में वही पद्य दूसरे कवि के नाम से । इससे प्रकट होता है कि कवियों के इतिहास की कोई यथार्थ परम्परा न होने के कारण पुराने समय में भी संग्रहकारों को पद्यों के रचयिताओं के नाम निर्धारित करने में बड़ी कठिनता पड़ती थी । संस्कृत में अनेक सूक्ति सन्दर्भ हैं; परन्तु यह केवल अधिक महत्वपूर्ण प्रन्थों का ही परिचय दिया जाता है ।
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परस्पर बहुत भेद
कवि के नाम से
(१) कन्द्रवचन समुच्चय--अबतक प्रकाश में श्राप सूक्तिअन्थों में यह सब से पुराना है। इसका सम्पादन डा. पेफ डब्ल्यू टॉमस (Thomas ) ने बारहवीं शताब्दी की एक नेपाली हस्तलिखित प्रति से किया था। इसमें पृथक पृथक कवियों के ५२२ इलाक संगृइति हैं; परन्तु उनमें से सब के सब १००० ई० से पहले के है ॥
(२) सदुक्तिकर्णामृत (या, सूक्तिकर्णामृत ) - इसकी रचना १२०५ ई० में बज्ञान के राजा लक्ष्मणसेन के एक सेवक श्रीधरदास ने की थी। इसमें ४४६ कवियों की रचनाएँ संगृहीत हैं । इन कवियों में से fear बङ्गाली ही हैं ।
(३) सुभापित मुक्तावली — इसका सम्पादक जल्द है जिसका प्रादुर्भाव काल ईसा की १३वीं शताब्दी है' । इसले पद्यों की स्थापना विषय-क्रम से की गई है । 'कवि और काव्य' पर इसका अध्याय बडा उपयोगी है। क्योंकि इससे कई कृतिकारों के बारे में अनेक निश्चित बाव मालूम होती हैं ।
(४) शाङ्गधरपद्धति – इमे १३३३ ई० में शाङ्गधर ने लिखा था । १६३ खण्डों के अन्दर इसमें ४६८६ श्लोक हैं । कुछ श्लोक
१ 'मद्रास सूची - प्रन्थ ( Catalogue ) के २०, ८११ के अनुसार इसे १२७५ ई० में वैद्यभानु पण्डित ने जल्हण के लिए लिखा था ।