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१७६ संस्कृत-साहित्य का इतिहास नाम से प्रसिद्ध है) बतलाया जाता है। परन्तु इसम पर्याह प्रमाण नहीं मिञ्जता। इसके कई संस्करण प्रचलित हैं जिनने पर्यात भेद है। उदाहरण के लिए, एक संस्करण में मुल्द ३५० श्ांक है जो ५७ अध्यायों में बराबर अरावर बैठे हुए हैं, परन्तु भोजराज-सम्पादित दूसरे में शाह अध्याय
और ५७६ श्लोक हैं । इस ग्रंथ में सब प्रकार के नीति-बचन मिलते हैं। उदाहरणार्थ :--
साल्पन्ति राजानः सकृजल्पन्ति पण्डिताः !
सकृत् कल्या. प्रदीयते ब्रीएयेतानि सकृत् सकृत् ॥' शैली सरल-सुबोध है और बहु-व्यापी छन्द अनुष्टुप् है। (२-४) नीति-रत्न, नीति-सार और नीति-प्रदीप बोटे-छोटे नीतिविषयक सन्दर्भ हैं। इनके निर्माए-कान का ठीक-टक पता नहीं। इनमें कोई-कोई पच वस्तुनः स्मरणीय हैं।
(५-७) समर-मातृका, चारु-चयों और कला-विलास का रचयिता (११वीं शताब्दी का) महाग्रंथकार क्षेमेन्द्र प्रसिद्ध है। दूसरे ग्रंथों की अपेक्षा इन अंथो से लेखक की कुशलता अधिक अच्छी तरह प्रकट
दूसरे लेखकों के और छोटे-छोटे कई ग्रंथ है; परन्तु वे यहाँ उल्लेख के अधिकारी नहीं हैं।
१ राजा लोग एक ही बार अाशा करते हैं, पंडित लोग एक ही बार बात कहते हैं, कन्याओं का दान एक ही बार किया जाता है । ये तीनों चीजें एक ही बार होती हैं।