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हाल- छतसई
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का चाहती है कि सदा शत ही बनी रहे, दिन कभी न निकले क्योंकि प्रभात काल में उसका जीवन-माथ विदेश जाने को तैयार है। कोई वृधातुर 'पथिक' किसी उद्यद्यौवना कन्या को कुएं पर पानी भरती हुई देखकर इस पानी पिलाने को कहता है और उसके सुन्दर बदन को देर तक देखते रहने का अवसर प्राप्त करने के लिए अपने चुल्लु में से पानो गिराने जगता है; जो इच्छा पथिक के सन में थी उसी इच्छा से पानी पिज्ञाने वाली भी उसके चुल्लू में पतली धार से पानी डालना प्रारम्भ करती है। वर्षा ऋतु के वर्णन में कुसुमों पर द्विरेफों के गुजारने का मूसलाधार वर्षा में मोरों और कौधों के हर्ष मनाने का और साभिलाष हरियों व कवियों के अपनी सहचारियों के तलाश करने का वयंग बढ़ा ही हृदयदारी नीति-सम्बन्धी बहुति का उदाहरण देना हो तो सुनिए - ' कृपय को अपना धन इतना ही उपयोगी है जितना पथिक को अपनी छाया । जगत में बहरे और अन्धे ही धन्य हैं; क्योंकि बहरे कटुशब्द सुनने से और अन्धे कुरूप को देखने से बचे हुए हैं ।" कहीं कहीं नाटकीय परिस्थितियाँ भी विचित्र मिलती हैं:- एक कुशल-मति स्त्री बहाना करती है कि मुझे बिच्छू ने काट लिया है; इस बहाने का कारण केवल यह है कि इसके द्वारा उसे उस वैद्य के घर जाने का अवसर मिल जाएगा जिसके साथ उसका प्रेम है ।
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अनुकरण -- प्रकाश में आए हुए अनुकृत प्रन्थों में से सब से अधिक प्रसिद्ध ग्रन्थ गोवर्धन को श्रायतिती है। इसकी रचना ईसा की १२ वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बंगाल के महीपति लक्ष्मणसेन के दरबार में हुई थी। इसमें सात सौ मुक्तक पथ हैं जो अकारादि के क्रम से रखे गए हैं। सारे प्रन्थ में शृङ्गाररस प्रधान है। इसके अध्यायों को बज्या का नाम दिया गया है। ध्वनि सिद्धान्त में विशेष पक्षपात होने के कारण लेखक ने अन्योक्ति ( व्यवहित Indirect व्यञ्जना ) का बहुत प्रयोग किया है । जैसे शम्भु ( ११०० ई० ) को अन्योक्तिमुक्त-जता में या