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শিক্ষা अनुभूति की गहराई में यह अत हरि के अन्य से निस्सन्देह बढ़कर है।
(६५) बिल्हण की चौरपंचाशिका (११ वीं श०) इस अन्य के नाम 'चौरपंचाशिका' के कई अर्थ लगाए जाते हैं। एक कहते है...-'ची परित पचास पच' । दूसरे कहते है---'चौर्यरत पर पचास पध' । तीसरी श्रेणी के लोग कहते हैं ... "चौर नामक कवि के बनाए हुए पचास पद्य", इत्यादि । किन्हीं किन्हीं हस्तलिखित प्रतियों में इसे 'बिल्हण-काव्य' लिखा है, इसमे प्रतीत होता है इसका रचयिता विषहण था, वही बिल्हण जो विक्रमांकदेवचरित' का ख्यातनामा प्रणेता है। इस ग्रन्थ के शाश्मीरी और दक्षिण भारतीय दोनों संस्करण कवि की किवदन्ती प्रसिद्ध प्रेयसी राजकुमारी का वर्णन भिन्न भिन्न देते है। सम्भवतमा कवि ने किसी राजपुत्री के साथ किसी चोर के अनुराग का वर्णन किया हो।
इसमें सुखमय म के तथाकथित अनिर्वचनीय दृश्यों का बडा मनोरन्जक सूक्ष्म और विस्तृत वर्णन है। आदि से अन्त तक शैली सरल, सुन्दर और अपरानुरूप है। वर्णित भावों में पर्याप्त विविधविधता पाई जाती है। प्रत्येक पद्य का प्रारम्भ 'अद्यापि (आज भी, अभी तक) से होता है और प्रत्येक पथ तीन अनुभूतियों तथा गहन मनोवेगों से भरा हुआ है । एक उदाहरण बीजिए :
अद्यापि at प्रणयिनी मृगशावकाची,
पीयूषवर्णकुचकुम्भयुगं वहन्तीम् । पश्याम्यहं यदि पुनर्दिवसावसाने,
स्वर्गापवर्ग वाराणसुखं त्यजामि ॥ सा के सारे अन्य में वसन्त तिलका छन्द है ॥
(६६) जयदेव जयदेव बान के राजा लक्ष्मणसेन के दार के पाँच रस्मों में था। इसके गीतगोविन्द का हान संस्कृत साहित्य के
१ विक्रमांकचरित पर टिप्पणी के लिए खण्ड ७२ देखना चाहिए।