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कालिदास की शैली
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अनुवास के विभिन्न भेदों और नाना छन्दों के प्रयोग में पूर्ण कौशल दिखाया है। किन्तु वह श्लेष का रसिक नहीं था ।
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उपके अन्थों ने अन्य कवियों के लिये आदर्श का काम किया है । मेघदूत के अनुकरणों का सरलेख ऊपर हो चुका है । हब के दोनों aree मालविकाग्निमित्र के अनुकरण पर लिखे गए हैं । मालतीमात्र में भवभूति ने उसके अच्वलन का आश्रय लिया है। दण्ड का पद्य 'मलिनं हिमांशीचा तरी तनोति' कालिदास से ही उधार लिया प्रतीत होता है । वामन ( वीं शताब्दी) ने कालिदास के उदाहरण लिए हैं और प्रानन्दवर्धनाचार्य के बाद से कालिदास के पठन-पाठन का पर्याप्त प्रचार रहा है और उसके अन्थों पर टीकाएं लिखी गई हैं।
कालिदास कुन्दों के प्रयोग में बड़ा निपुण है । मेघदूत में उसने केवल मन्दाक्रान्ता छन्द का प्रयोग किया हैं । उसके अधिक प्रयुक्त छन्द इन्द्रवज्रा [ कुमारसम्भव में सर्ग १, ३, और ७: रघुवंश में वर्ग २, २, ७, १३, १४, १६ और १७, ] और श्लोक | कुमारसम्भव में सर्ग २ और ६, रघुवंश में सर्ग १, ४, १०, १२, १२, और १६ ] हैं । कुमारसम्भव की अपेक्षा रघुवंश में नाना प्रकार के छन्द अधिक प्रयुक्त हुए हैं ।