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संस्कृत साहित्य का इतिहास
सरकार की सनातनी रीखि पायेंगे । उपनिषद, भद्गीस, महाभारत और रामायण के उल्लेख भी देखने को मिलते है। बारी से पिट है कि कवि ने ब्रह्मसम्बन्धी वैदिक गायिका गदरा अध्ययन किया होगा ।
शहर
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जैसा ऊपर कहा जा चुका है. बुद्ध की मी अनेक बातें पाई जाती है। ( सर्व ३, ३-१६) जब सिद्धार्थ का जुनून पदजी बार बाज़ार में निकलता है तब स्त्रियां उसे देखने के लिए हाकिमों में इकट्ठी हो जाती हैं, रघुवंश ( सर्ग ७ -१२ ) में भी रघु के नगर प्रवेश के समय ऐसा ही वर्णन है | विचार और वर्णन दोनों पटियों से बुद्धचरित का ( सर्ग १३, ६) काम का सिद्धार्थ पर आक्रमण कुमारसम्भव के ( स २, ६ ) काम के शिव पर किए आक्रमण से मिलता है । ऐसे और भी अनेक दृष्टान्त दिए जा सकते है। इस एक बात और देखते हैं । बुद्धचरित सोती हुई स्त्रियों का वर्णन रामान्य मत ऐसे ही वर्णन से बहुत मिलता-जुलता है । सम्पूर्णकाव्य में वैदर्भी रोति है, अत:
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में कालिदालीय महाकाव्यों के लिए; बुद्धचरित में
१ सच तो यह है कि सभी विद्वानों ने कालिदास और अश्वघोष मे बहुत अधिक समानता होना स्वीकार किया है। किन्तु कौन पहले हुआ, और कौन बाद में, इस बारे में बड़ा मतभेद है । धिष्ण्य (स्थान) निर्वाण श्रादि शब्द एवं कतिपय समास दोनों ने एक जैसे श्रयों में प्रयुक्त किए हैं। यह अधिक सम्भव प्रतीत होता है कि दोनों में तीन शताब्दियों का तो नहीं, एक शताब्दी का अन्तर होगा । कालिदास के विपरीत, अश्वघोष की रचना में वैदिक शब्द नहीं पाए जाते। वह वैदिकलौकिक संस्कृत- सन्धि काल के बाद हुआ। साथ ही ऐसा भी मालूम होता है कि कालिदास की अपेक्षा अश्वघोष अधिक कृत्रिमता-पूर्ण है । अश्वघोष की रचना में प्रायः ध्वनि-सौन्दर्य उत्पन्न करने के लिए श्रर्थ की बलि कर दी गई है।