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संस्कृत-साहित्य का इतिहास
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(घ) माघ ने मट्टि का अनुकरण किया है. विशेष करके याकरहा में अपनी योग्यता दिखाने का महाप्रयत्न करले।
भट्टि कौन था? हमारे ज्ञान की जहाँ तक पहुँच है उसके अनुसार यह बताना सम्भव नहीं कि कौन ले कवि का नाम महि था। कोई-कोई कहते हैं कि व ह और महि दोनों एक ही व्यक्ति के नाम है। किन्तु यह कोरी कल्पना मालूम होती है क्योंकि वसाह ने माकरण की कई अशुद्धियाँ की है। किसी-किसी का कहना है कि महि शब्द मत का प्राकृत रूप है, अतः भतृहरि ही भट्टि है। किंतु यह सिद्धांत भी माननीय नहीं हो सकता ! अधिक सम्भावना यही है कि भट्टि कोई इन सब से पृथक् ही भक्ति है।
(३४) भाव (६६७-७००ई०) महाकाच्यों के इतिहास में साध का स्थान साहा उच्च है। कलिदास, अश्वघोष, मारवि और भट्टि के ग्रंथों के समान साध का ग्रंथ शिशुपालव (जिसे 'माघ काम्च' भी कहते हैं। महाकाव्य गिना जाता है। कई बातों में वह अपने पुरस्सर मारवि' से भी बढ़ जाता है।
शिशुपालवध में २० सर्म हैं । इसमें युधिष्ठिर का राजसूययज्ञ समाप्त होने पर कृष्ण के हाथों शिशुपाल के मारे जाने का वर्णन है । १. भारतीय सम्मति देखिये।
तावद् भा भारवे तियावन्माघस्य नोदयः । उदिते तु पर माचे भारवे भी वेरिव ।। उपमा कालिदासस्य भारवेर्थगौरवम । दण्डिनः पदलालित्यं माघे सन्ति योगुणाः ॥ माघी माघ इवाशेष क्षमः कम्पयितु जगत् । श्लेषामोदभरं चापि सम्भावयितुमीश्वरः ।।
यह जानना चाहिये कि माघ को जो महती प्रशंसा की गई है वह निराधार नहीं है।