________________
संस्कृत का पुनरुत्थान की इस धारणा का आधार फगुसन (Fergusson) महोदय की वह स्थापना प्रतीत होती है जिसमें उन्होंने कहा है कि उज्जैन के विक्रमा. विश्य नामक किली दाजा ने ५४४ ई० में सिथियनों को परास्त करके उन्हें भारत से निकाल दिया और अपनी विजय की स्मृति में विक्रम सम्बत् प्रवर्तित किया और साथ ही पुरातनता के नाम पर प्रतिष्ठा प्राप्त कराने के प्रयोजन से इसे ६०० वर्ष पुराना प्रसिद्ध किया' । परन्तु पलीट (Fleet) महोदय ने शिलालेखों का गहन अनुसन्धान करके अब यह निन्तितया सिद्ध कर दिया है कि ५७.३० वाला भारतीय सम्बत उक्त विक्रमादित्य से कम से कम सौ लाज पहले अवश्य प्रचलित था, तथा छठी शताब्दी के मध्य में सिथियनों को पश्चिमी भारत ले निकालने की भी कोई सम्भावना प्रतीत नहीं होती; कारण, भारत के इस भाग पर गुप्तवंशीय सुपों का अधिका- था ईसा की छठी शताब्दी के मध्य में अन्य विदेशी लोग अर्थात् हूण अवश्य पश्चिमी भारत से निकाले गए थे; परन्तु उनका विजेता कोई विक्रमादित्य नहीं, यशोधर्मा विष्णुवर्धन था।
प्रो० मैक्समूलर ने अनुमान किया था कि विक्रमादित्य के दार के काजिदास प्रादि माहित्यिक रत्नों ने ईसा की छठी शताब्दी के मध्य में संस्कृत को पुनरुज्जीवित किया होगा, परन्तु अब इतिहास में छठी
विद्वानो को इस स्थापना पर प्रारम्भ से ही सन्देह था । इतिहास में ऐसे किसी अन्य सम्वत् का वर्णन नहीं मिलता जो पुरातनता के नाम पर प्रतिष्ठा प्राम कराने के लिए, या किसी अन्य कारण से, प्रवर्तन के समय ही पर्याप्त प्राचीन प्रसिद्ध किया गया हो । प्रश्न उठता है छः सौ साल प्राचीन ही क्यो प्रसिद्ध किया गया १ हजार साल या और अधिक प्राचीन क्या नहीं ?