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काव्य निर्माता
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(स) हेमचन्द्र का ( ११६०-११७२ ई० ) त्रिषष्टिशलाका पुरु
चरित
इस ग्रन्थ में दस पर्व हैं जिनमें जैनधर्म के त्रेसठ ६६ श्रेष्ठ पुरुषों
के जीवन चरित वर्णित हैं। उनमें से २४ जिन, १२ चक्रवर्ती, ६ वासु
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विष्णुद्विट् हैं ] । यह अभ्थ विस्तृत और चित
देव, ६ बलदेव और उकता देने वाला होते (ग) हरिचन्द्र का
हुए भी महत्वपूर्ण है ।
शर्माभ्युदय | इस ग्रन्थ में २१ सर्ग हैं। इसके निर्माणकाल का पता नहीं है। इसमें तेरहवें तीर्थङ्कर धर्मनाथ क जीवन वर्णित है ।
(५४) ईमा की छठी शताब्दी में संस्कृत के पुनरुत्थान का वा ( India what can it teach us ) ' इण्डिया चट् कैन इट् दीच् अस' नामक अपने ग्रन्थ में प्रो० मैक्समूलर ने बड़ी योग्यता के साथ यह बाद प्रतिपादित किया है कि ईसा की छठी शताब्दी के मध्य में संस्कृत का पुनरुत्थान हुआ । अनेक त्रुटियाँ होने पर भी कई साल तक यह वाद क्षेत्र में डटा रहा ।
प्रो० मैक्समूलर की मूल स्थापना यह थी कि एक ( सिथियन ) तथा अन्य विदेशियों के आक्रमण के कारण ईसवी सन् की पहिली दो शताब्दियों में संस्कृत भाषा सोती रही । परन्तु इस सिद्धान्त में वचपमाण त्रुटियाँ थीं :
(१) सिथियनों ने भारत का केवल पाँचवां भाग विजय किया था । (२) वे लोग अपने जीते हुए देशों में भी स्वयं शीघ्र ही हिन्दू हो गये थे !
उन्होंने केवल हिन्दू नाम ही नहीं अपना लिए थे, प्रत्युत हिन्दू भाषा (संस्कृत) और हिन्दू धर्म भी अपना लिया था । उपमदत्त (ऋषभदत्त ) नामक एक सिथियन वौर ने तो संस्कृत और प्राकृत की मिली-जुली भाषा में अपने वीर्य-कर्म भी उत्कीर्ण करवाए थे । कनिष्क स्वयं बौद्धधर्म का बहुत बड़ा अभिभावक था ।
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