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माघ
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महाभारत में यह कहानी बहुत ही सादी है किंतु माघ ने इसमें अनेक सुन्दर सुधार कर दिये हैं । महाभारत में यज्ञ का वर्णन केवल एक पॉक में समाप्त कर दिया गया है। साथ में इसका चिह्न उतारा गया है । महाभारत पक्ष विपक्ष को वस्तृवाओं को संक्षिप्त कर दिया गया है • युद्ध की प्रारम्भिक कार्यवाहियों प्रतिपक्षिनों द्वारा महीं, दूवो द्वारा पूर्ण कराई गई हैं । प्रतिपक्षियों के युद्ध से पूर्व उनकी सेनाओं का युद्ध दिखलाया गया है। महाभारत की कथा aforest feसो हाकाव्य का विषय बनने के योग्य थी, किं की वन करने की शक्ति ने असखी कथा की त्रुटियों को पूर्ण कर दिया है। आरवि ने अपने काव्य में शिव की, शार माघ ने अपने काव्य में विष्णु की स्तुति की है।
शैली -- (१) भाव भाव प्रकाशन की सम्पदा से परिपूर्ण और कल्पना की महती शक्ति का स्वामी है।
(२) माघ काम-सूत्र का बडा परिडत था । उसके शृङ्गार रसक श्लोक बहुधा माधुर्य और सौंदर्य से परिपूर्ण हैं । किंतु कभी-कभी घन इतने विस्तृत हो गए हैं कि वे पाश्चात्यों को मन उकता देने वाले मालूम होते हैं ।
(३) माघ कलंकारों का बड़ा शौकीन है। इसके अलंकार बहुधा सुन्दर हैं, और पाठक के मन पर अपना प्रभाव डालते हैं। इनके अनु प्रास सुन्दर और विशाद है। श्लेष की ओर भी इसकी पर्यात free देखी जाती है । उदाहृस्या देखिये
अभिधाय तदा तदप्रियं शिशपालोऽनुशयं परं गतः । भवतोऽभिमना मोड़ते सरुष. कतुमुपेत्य माननाम् ॥
५
Maryla
१. तब प्रिय बच्चन कह कर शिशुपाल अत्यन्त कुपित (और पश्चात्तापवान् ) हो गया । वह निर्भय ( और उत्सुक ) होकर आपके सामने आना चाहता है। और श्राप का हनन ( और मान ) करना चाहता है ।