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श्रीहर्ष
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वर्णित है। उसके अन्तिम सर्ग में सहसा दमयन्ती की प्रणय-कल्पनाएं हो गई हैं । यद्यपि कवि एक नैयायिक था, तथापि उसने विवाह के विषय का वर्णन करने में कामशास्त्र को कविता का रूप दे दिया है । कवि में वर्णन करने की अदभुत योग्यता है । उसने एक साधारण कथा को एक महाकाव्य का वर्णनीय विषय का रूप दे दिया है। भारतीय कारकों ने श्रोव को महाकवि कहकर सम्मानित किया है और कवि इस सम्मान का अधिकारी भी है । एक जनश्रुति है कि श्रीहर्ष सम्मट का मानना (अथवा किसी रिश्ते में आई ) था । श्रीहर्ष ने अपनी रचना (वध) को श्रभिमानपूर्ण हृदय के साथ मम्मट को दिखलाया । अम्मद ने खेदानुभव के साथ कहा कि यदि यह ग्रन्थ मुझे अपने (काव्य प्रकाश के) दोषाध्याय के लिखने से पहले देखने को मिलता तो मुझे दूसरे प्रन्थों में से दोषों के उदाहरण ढूँढने का इतना प्रयास न करना पड़ता । किन्तु इस जनश्रुति में सत्यता का बहुत थोड़ा अंश rata होता है ।
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श्रीहर्ष में शिष्ट रचना करने की भारी योग्यता है । यह भाषा के प्रयोग में सिद्धहस्त और सुन्दर-मधुर भाव - प्रकाशन में निपुण है । इसकी अनुप्रास की घोर प्रभिरुचि बहुत अधिक है। कभी कभी यह अन्त्यानु मास की भी छटा बाँध देता है । इसने सब उन्नीस प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है जिन में से उपजाति और वंशस्थ अधिक आए हैं ।
सूचना - हरविजय को दोषकर उपर्युक सब महाकाव्यों पर सुप्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ ने टीकाएँ लिखी हैं ।