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अध्याय ८
महा-काव्य
(३१) सामान्य परिचय - संस्कृत साहित्य में अनेक बड़े प्रतिभाशाली महा-काव्य रचयिता कवि हो चुके हैं जिनमें अमर, अचल और अभिनन्द के नाम उल्लेखनीय है । ये कवि सम्भव कालिदास की श्रेणी में रखे जा सकते थे, किन्तु अब हमें सूक्ति-संग्रहों में इनके केवल मान' ही उपलब्ध होते हैं। प्रकृति की संहारिणी शक्तियों ने इसके ग्रन्थों का संहार कर दिया है। इनके अतिरिक घटिया दर्जे के और भी afar हुए हैं front ofय में बार बार उल्लेख पाया जाता है; पर
दुर्भाग्य है कि इनके प्रन्थ हम तक नहीं पहुँच पाए हैं। अत: इस अध्याय में केवल इन कवियों को चर्चा की जाएगी जिनके प्रथ प्राप्य हैं।
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सुप्रसिद्ध रामायण और महाभारत से पृथक राज- सभा-कायों या [ संक्षेप में ] कार्यो की एक स्वतंत्र श्रेणी है। इस श्रेणी के ग्रन्थों में प्रतिपाद्यार्थ की अपेक्षा रीति, अलङ्कार, वर्णन इत्यादि बाह्य रूप-रङ्ग के
arer में अधिक परिश्रम किया गया है। ज्यों-ज्यों समय बीतता गया यस्य काव्य में कृत्रिमता की वृद्धि होती गई । इस के दो प्रकार
१. कविरमरः कविरथलः कविरभिनन्दश्च कालिदासश्च । श्रन्ये कश्यः कपयश्चापलमात्रं परं दधति ||