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भारबि का समय
((१) काशिकावृत्ति में इसकी रचना में से उदाहरया दिया गया है।
(३) ऐसा प्रतीत होता है कि इस पर कालिदास का प्रभाव पड़ा है और इसने माष के ऊपर अपना प्रभाव डाला है।
(४) बाण ने अपने हर्षचरित की भूमिका में इसका कोई उल्लेख नहीं किया । सम्भवतः बाण के समय तक भारवि इसना प्रख्यात नहीं हो पाया था। अतः हम इसका काल १५० ई. के आस-पास रखेंगे।
किरातार्जनीय-इस अन्य का विषय महाभारत के वन-पर्व से लिया गया है। काव्य के प्रारम्भिक श्लोकों से ही पता लग जाता है कि कृती कलाकार के समान भारवि ने अपने उपजीव्य अर्थ को कितना परिष्कृत कर दिया है। महाभारत में पायाव-बन्धु बनवास की अवस्था में रहते हुए मन्त्रणा करते हैं, किन्तु भारवि इस मन्त्रणा को गुप्तचर से प्रारम्भ करते हैं जिस युधिष्ठिर ने दुर्योधन के कार्यों का पता लगाने के लिए नियुक्त किया था। अब द्रौपदी को मालूम हुवा कि दुर्योधन सरकार्यों के द्वारा प्रजा का अनुमा-माजक बनता जा रहा है, सब उसने तत्काल युद्ध छेस देने की प्रेरणा की (सर्ग)। भीम द्रौपदी के कथन का शक शब्दों में समर्थन करता है, किन्तु युधिष्ठिर अपने वचन को तोडने के लिए तैयार नहीं है । सा२) युधिष्ठिर व्यास से परामर्श देने की प्रार्थना करता है। व्यास ने परामर्श दिया कि अर्जुन को हिमालय पर जाकर कठिन तपस्या द्वारा दिव्य सहाय्य प्राप्त करना चाहिए। अजन को पर्वत पर ले जाने के लिए इतने में वहाँ एक यक्ष आ जाता है (सर्ग ३) चौथे से ग्यारहवं तक पाठ सर्गों में कवि की नवनवीन्मेषशालिनी प्रज्ञा प्रस्फुटित होती है। इन सों में शिशिर, हिमालय, स्नान-क्रीड़ा, सन्ध्या, सूर्यास्तामान, चन्द्रोदय इत्यादि प्राकृतिक दृश्यों का चिया बई ही रमणाय रङ्गों में किया गया है। इसके बाइ इसमें अजुन का स्कन्द के सेनापतित्व में आई हुई शिव की सेवा के साथ (सर्ग १५) और अन्न में किरात (प्रच्छन्न शिव) के साथ युद्ध वर्णित है। युद्ध में शिव अर्जुन से प्रसन्न होकर उसे दिग्ध शस्त्र प्रदान