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संस्कृत साहित्य का इतिहास
ज्ञात होता है । सौन्दरानन्द में कवि दार्शनिक वादों का वर्णन करता है और बड़े कौशल के साथ बौद्ध सिद्धान्तों की शिक्षा देता है। शैली को कृति और ति की इष्टि से सौन्दरानन्द बुद्धचरित से बहुत बढ़ कर है । सौन्दरानन्द की कविता वस्तुतः अनवद्य तथा हृद्य है, और चरित्र केवल पद्यात्मक वर्णन है ।
सौन्दरानन्द का प्रकाशन प्रथम बार १६३० ई० में हुआ। इसके सम्पादक पं. हरप्रसाद शास्त्री थे जिन्होंने नेपाल से प्राप्त हस्तलिखित प्रतियों के आधार पर इसका सम्मान किया था इसकी तुलना टेनिस के 'इन मैमोरियम' से की जा सकती है।
(२६) अश्वघोष के अन्य ग्रन्थ
कुछ और भी ग्रन्थ है जिन्हें अश्वघोष की कृति कहा जाता है । इनसे ज्ञात होता है कि कवि में वस्तुतः बहुमुखी प्रज्ञा थी ।
(१) सूत्रालङ्कार - इसका उल्लेख ऊपर हो चुका है और इसका पता हमें तिब्बती अनुवाद से लगता है। इसमें कवि ने बौद्धधर्म के प्रचारार्थ एक कहानी के घुमाने फिराने में अपनी योग्यता का प्रदर्शन किया है ।
(२) महायान श्रद्धोत्पाद - यह बौद्धों की प्रसिद्ध पुस्तक है। इसमें महायान सम्प्रदाय के नाल्यकाल के सिद्धान्तों का निरूपण है ! जनश्रुति के अनुसार यह सन्दर्भ अश्वघोष का लिखा हुआ है । यदि जमश्रति ठीक है तो अश्वघोष एक बहुत बड़ा प्रकृति-विज्ञान - शास्त्री था ।
(३) वज्रसूचि --- ब्राह्मणों ने बौद्धधर्म का इस लिए भी विरोध किया था कि वे उच्चवणिक ( ब्राह्मण ) होकर अपने से हीन वर्णिक ( क्षत्रिय) का उपदेश क्यों प्रहण करें । इस ग्रन्थ में ब्राह्मणों के चातुर्य सिद्धान्त का खण्डन किया गया है ।
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(४) गण्डिर स्तोत्र गाथा -- अनरुप महत्व का यह एक गीति काव्य है । भिन्न-भिन्न छन्दों में इसमें अनेक सुन्दर पद ( गीत ) हैं जिनसे किसी भी कविता का गौरव बढ़ सकता है। इससे पता चलता है कि