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घोष के महाकाव्य
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प्राञ्जलता का होना स्वाभाविक है । कालिदास के अन्थों के समान इसमें भी लम्बे लम्बे समास नहीं हैं। भाषा सरब, सुन्दर, मधुर और प्रसाद गुरु-पूर्ण है।
Brain में ऐतिहासिक महाकाव्य की पद्धति का अनुसरण करने हुऐ बुद्ध के सौतेले भाई नन्द और सुन्दरी की कथा दी गई है और बतलाया गया है कि बुद्ध ने नन्द को, जो सुम्दरी के प्रेम में डूबा हुआ था, किस प्रकार अपने सम्पदाय का अनुगामी बनाया। इसके बोस के बीस सर्ग सुरक्षित चले आ रहे हैं । यह ग्रन्थ free देह अश्वघोष की ही कृति है, कारण कि:--
(1) सौन्दरानन्द और बुद्धवरित में एक सम्बन्ध देखा जाता है। वे दोनों एक दूसरे की पूर्ति करते हैं । उदाहरण के लिए बुद्धचरित में कपिलवस्तु का वर्णन संतित है और सोन्दरानन्द में विस्तृत बुद्धचरित क बुद्ध के संन्यास का विस्तृत वर्णन है और सौन्दरानन्द में संक्षित । बुद्धचरित में नन्द के बौद्ध होने का वर्णन संक्षिप्त किन्तु सौन्दरानन्द में विस्तृत है। ऐसे और भी बहुत से उदाहरण दिए जा सकते हैं ।
(२) इन दोनों काव्यों में कान्नीय सम्प्रदाय, रामायण, महाभारत, पुराण और भी हिन्दूसिद्धान्तों का उल्लेख एक जैसा पाया जाता है 1
(३) इन दोनों काथों में ऋ आदि अनेक ऋषियों का वर्णन एक क्रम से हुआ है। सौन्दरानन्द में अपने से पहले किसी काव्य की ओर संकेत नहीं पाया जाता, इसी आधार पर प्रो० कीथ ने यह कल्पन कर डाली है कि सौन्दरानन्द अश्वघोष की प्रथम रचना है । परन्तु इसके विपक्ष का प्रमाण अधिक प्रबल है । सूत्रालङ्कार में बुद्धचरित के वो नाम का उल्लेख पाया जाता है, सौन्दरानन्द का नहीं । बुद्धचरित में महायान का एक भी सिद्धान्त उपलब्ध नहीं होता; किन्तु सौन्दरानन्द के अन्तिम भाग में कवि का सहायान के सिद्धान्तों से परिचित होना
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१ कीयकृत 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' (इग्लिश) पृष्ठ १७ ।