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कालिदास की शैली
निर्गतासुन वा कस्य कालिदासस्य सूकिषु
प्रोतिर्मधुरसान्द्रालु मारीचि जायते ।। वस्तुतः भारतीयों की सम्मति में कालिदास अतुपम कशि है :पुरा कवीनां नायनाप्रसङ्ग कलिष्ठकाधिष्ठित कालिदासा।
प्रथापि तत्तुल्यकामाबाद नामिका सार्थवती बभूव ॥ जर्मन महाकवि गेटे (Goethe) ने अभिज्ञान शाकुन्तल का सर विलियम जोन्स कृत (१७८६ ई.), अनुवाद ही पढ़कर कहा था:----
क्या तू उदीयमान वर्ष के पुए और क्षीयमाण वर्ष के फन देखना चाहता है? क्या वह सब देखना चाहता है जिससे आमा मन्त्रमुग्ध मोद-मग्न, हर्षाप्लादित और परितृप्त हो जाती है? क्या तू घुजोक और पृथ्वीनीक का एक नाम में अनुगह हो जाना पसन्द करेगा? अरे, तब मैं तेरे समक्ष शकुन्तला को प्रस्तुत करता हूँ और बम बम कुछ एक दम इस ही में प्रागया ।
इनके काव्य की प्रथम श्रेणी की विशेषता व्यकता है (मिजाइये, कास्यस्यात्मा स्वनि:)! वह उस सुनहरी पद्धति पर चला है जो पुराणों की घोर प्रसाद-गुण-पूर्णता और अधीन कवियों की सीमा से सदका कृत्रिमता के मध्य होकर गई है। कभी कभी हमें उस में मास की सी प्रसाद गह-पूर्णता देखने को मिलती है, किन्तु इसमें भी एक अनोखापन भौह लालित्य है। कालिदास के अधोलिखित पछ की तुखना भास ने उस पश्य से की जा सकती है ओ वल्लभदेवकृत सुभाषितावली में १३१३ क्रमांच पर प्राया है
गृहिणी सचिव सखी विधः प्रियशिष्या चलित कलाविौ। करुणाविमुखेन मृत्युना हरता त्वां वदः कि म मे हतन् ।। मास कहता है
भार्या मन्त्रिवरः सखा परिजनः सैका बहुत्वं गता। कालिदास में कथानक का विकास करने का असाधारण कौशल