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सस्कृत-साहित्य का इतिहास
से लेकर १२० तक पद्य पाए जाते हैं। सारी कविता में मन्दामा छन्द है जिसमें कवि पूर्ण कृतहस्त प्रतीत होता है।
इसी प्रकार की कथावस्तु शिल्लर ( Schiller ) के मेरिया स्टुअर्ट में भी आई है । इलमे भी एक बन्दी रानी अपने प्रमोदमय यौवन का माल्देश स्वदेश की ओर उड़ने वाले बादलों के द्वारा भेजती है। इसमें बानो का विरह अनन्त है और उसका विधुर जीवन पाठक के हृदय को चित कर देता है।
मेघदूत के पढ़ने-पढाने का प्रचार खून बहा है। इसकी नकल पर अनेक काव्य लिखे गए हैं । भिन्न-भिन्न शताब्दियों में मिन-भिन्न विद्वानों ने इस पर अनेक टीकाएँ लिखी हैं। मन्दसौर में बरसभट्टि की लिखी विक्रम सम्बत् १३० (सन् ४७३ ई०) को प्रशस्ति मिलती है जिले उसने दशपुर में सूर्य मन्दिर की प्रतिष्ठा के लिए बड़े परिश्रम के लिखा था । उसको लिखने में वत्सभट्टि ने मेघदूत को अवश्य अपना प्रादशे रक्खा है। यद्यपि यद्द पस्ति गौडी रीति में लिखी गई है और कालिदास की रीति दैदर्भी है, तथापि कुछ पद्य बहुत ही चारु है.. और ५४ एश्यों की संक्षिप्त प्रशस्ति में वरसहि ने दशपुर का दीर्घचित्र और वसन्त एवं शरद् का वर्णन दे दिया है। यह बात ध्यान देने योग्य है कि मेघदूत का विच्छती भाषा में एक अनुवाद तंजार में सुरक्षित है, साथ ही इस का एक अनुवाद लंका की भाषा में भी है। इसके अतिरिक्त, इसके अनेक पद्य अलंकार के सन्दर्भो में भी उद्धत मिलते हैं । १२ वी शताब्दी में धोयीक ने इसी के अनुकरण पर पवनदूत लिखा है।
यह छोटा-सा काव्य-अन्ध भूगोल के रसिकों के भी बड़े काम का उसने उन १२० को लेकर, समस्यापूर्ति की कला के अभ्यास के रूप में, उनसे पाव नाय का जीवन लिख डाला । प्रक्षेपो का कारण अन्य का अत्यन्त सर्वप्रिय होना प्रतीत होता है।