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अन्यों के मौलिक भाग उन की जान नहीं लेता (७म सर्ग) । किर अज के शान्तिपूर्ण शासन का वर्णन झोता है । इन्दुमती की सहसा मृत्यु से अज पर वज्रपात-सा हो जाता है। उसका धैर्य टूट जाता है और उसे जीवन में प्रानन्द दिखाई नहीं देता । उस पर किसी सान्त्वना का कोई प्रभाव नहीं होता। वह चाहता है कि उसको अकाला मत्यु हो जाए जिनसे वह अपनी प्रिया से स्वर्ग में फिर मिल सके ( सर्ग) उसके बाद उसका पुत्र दशरथ राजा होता है । श्रवणकुमार की कथा वर्णित है (स्म सर्ग) अगले छः सर्गों में राम की कथा का सविस्तर वर्णन पाता है। सोलहवे वर्ग में कुश की, सत्ररहवें में कुश के पुत्र की और अठारहवे तथा उन्नीसवें लगे में उनके अनेक उत्तराधिकारियों की कथा दी गई हैं। उत्तराधिकारियों में से कुछ के तो केवल नाम मात्र ही दिये गए हैं। काव्य अपूर्ण रहता है । कदाचित इसका कारण कावे की मृत्यु है।
(२१) कालिदास के ग्रन्थों के मौलिक भाग (क) अपर' कहा जा चुका है कि विल्सन ने दुर्बल प्राधार पर मानविकाग्निमित्र को कालिदास की रचना मानने में सन्देह प्रकट किया था, परन्तु वास्तव में यह कालिदास की ही रचना है। शेष दोनों नाटक सर्व सम्मति से उनकी ही कृति माने जाते हैं।
(0) ऋतुसहार कालिदास कृत है या नहीं, इस बारे में बड़ा विवाद पाया जाता है। विरोधी पक्ष कहता है कि--
(१) नाम के अन्दर 'संहार' शब्द 'चक्कर' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है और कालिदास ने कुमारसम्भव में इस शब्द का प्रयोग विल्कुल ही भिन्न अर्थ में किया है, यथा---
क्रोधं प्रभो संहर संहरेति
यावद् गिरः खे मरुतां चरन्ति । (२) यह काव्य ग्रीष्म ऋत के विशद वर्णन से प्रारम्भ होकर वसन्ता देखिये खण्ड २० का (1)।