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११६ सस्कव-साहित्य का इतिहास पैदा होती है इस विचार का समर्थन कोई बहान् नहीं रखा यह विधार मानीव पर खड़ा मालूम होता है।
६३) पञ्चम शताब्दी वाला बाद । (क) कहा जाता है कि चन्द्रगुप्त द्वितीया विक्रमादित्य कालिदास का श्राश्रयदाता था।
(ख) मेघदूत में, रघुवंशस्थ दिजन एवं राम के लंका से लौटने में कालिदास ने जो भोगोलिक परिस्थिति प्रकट की है वह गुपक्षकाल के भारत को सूचित करता है ।
(ग) रखु की विजय का या समुगुप्त की दिग्विजय से आया होगा जिलका मम भी प्रायः यही है।
(4) कदाचित् कुमारसम्भव कुमारगुल के जन्म की ओर संकेत करता हो।
(ब) मुद्रगुप्त ने अश्वमेध यज्ञ किया था। मालविकाग्निमित्र में जो अश्वमेव वर्णित है वह कदाचित् उसी की ओर संकेत हो।
(च) इस बात की पुष्टि वम महि (४७३ ई०) रचित कुमारगुप्त के मन्दसौर के शिलालेख से भा होती है। इस शिलालेख के क पद्य कालिदास के रघवंश और मेघदूत के पचों का स्मरण करते हैं। उदाहरणार्थ
चलस्पताका मजलासनाथाम्यत्यर्थयुकान्यधिकोनतान्ति । शदिलाताचित्रलिताम्रकूटतुल्योपमानानि गृहाणि च ।। ফানুজ মিসানালি ব্যানারি তুলনা
सवेदिकानि । गान्धर्वशब्दसुखरामिण निविष्टचित्रकर्माथि बोलकदलीवनशो
मितानि । वरसमाद्रि के यह पथ मेघदूतस्थ अधोलिखित पद्य का पढ़ान्तर करणमान है