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संस्कृत साहित्य का इतिहास
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रोमक सिद्धन्त ( ४०० ई०) से किया होना
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(ञ) कालिदास ने ज्योतिष शास्त्र का 'मित्र' शब्द प्रयुक्त किया है | ह शब्द यूनानी भाषा का प्रतीत होता है। प्रो की केम सार यह शब्द कालिदाल का जो बात सूचित करता है यह ३२० ई० से पहले नहीं पड़ सकता ।
(2) कहा गया है कि काचिदाल की प्राकृत भाषाएं अश्वघोष की प्राकृतों से पुरानी नहीं हैं, परन्तु यह भाषा-तुमा यथार्थ नहीं हो सकती, कारण कि अश्ववोष के ग्रन्थ मध्य एशिया में और काजिदास के भारत में उपलब्ध हुए हैं ।
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इस प्रकार हम देखते हैं कि काfate का are at iters a अर्थात ई० पू० प्रथम शताब्दी और ४०० हूँ० के मध्य पड़ता "जब तक ज्ञात काल शिलालेखों के साथ तथा संस्कृत के प्राचीनतम narrat में दिए नियमों के साथ मिलाकर उसके प्रत्येक ग्रन्थ की भाषा, शैली और साहित्यिक ( अलंकारिक ) परिभाषाओं का गहरा अनुसन्धान न हो आए तब तक उसके काल के प्रश्न का निश्चित सम्भव नहीं है ।"
(२४) कालिदास के विचार
कालिदास पूर्णता को प्राप्त ब्राह्मण (वैदिक) धर्म के सिद्धान्तों का सच्चा प्रतिनिधि है । वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्रइन चार वर्णों और इनके शास्त्र का मानने वाला है ।
ब्रह्मचर्य, गार्हस्थ्य, वानप्रस्थ्य और संन्यास इन चारों श्राश्रमों एवं इनके शास्त्र विहित कर्तव्यों का पक्षपाती है । इस अनुमान का समर्थन रघुवंश की प्रारम्भिक पतियों से ही हो जाता है---
शैशवेऽभ्यस्तविद्यानां यौवने विषयैषिणाम् । arat मुनिवृसोni योगेनान्ते सनुत्यजाम् ॥
१ मैक्डानल, संस्कृत साहित्य का इतिहास ( इंग्लिश ) पृष्ठ ३२५