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संस्कृत साहित्य का इतहास
T र में कालिश के ग्रन्थों में से दृश्यों का अनुकरण किया हो। यह विश्वास कम होता है कि संस्कृत साहित्य के सर्वतोमुखीजावान् सर्वश्र ेष्ठ कवि ने अश्वघोष के बुद्धचरित्र की नकल की दो और सावन सुख में, एक ही नहीं, दोनों महाकाव्यों में चुराए हुए मान से दूकान विभूषित की हो ।
(अ) हाल ( ईसा की प्रथम शताब्दी ) की सतसई में एक रथ में महाराज विक्रमादित्य की दानस्तुति आई है।
६) बौद्धधर्म - परामर्शी स्थलों तथा शकुन्तला में आए बौद्ध धर्म सम्बन्धो राज-संरक्षणों की बातों से मालूम होता है कि कालिदास ईसवी पन् के प्रारम्भ में कुछ पूर्व हुआ होगा । यह वह काल था जिस तक राजा लोग बौद्धधर्म का संरक्षण करते आ रहे थे । 'प्रवर्ततां प्रकृति द्विताय पार्थिवः सरस्वती श्रुतिमतां महीयताम्' की प्रार्थना उसके व्यथित हृदय सेड निकली होगी ।
किन्तु क बाद त्रुटियों से बिल्कुल शून्य नहीं है ।
(क) इसका कोई प्राण नहीं मिलता कि ई० पू० की प्रथम शताब्दी में विक्रमादित्य नामक किसी राजा ने ( चाहे दाल की सतसई में आया हुआ विक्रमादित्य सम्बन्धी उल्लेन सत्य ही हो ) शकों को परास्त किया हो ।
(ख) बहुत सम्भव है कि विक्रमादित्य, जिसके साथ errerana रूढ़ि के अनुसार कालिदास का नाम जोड़ा जाता है, कोई उपाधि मात्र हो, और व्यकिवाचक संज्ञा न हो ।
(ग) इसका कोई प्रमाण नहीं कि २७ ई० पू० में प्रवर्तित सम्वत् विक्रम सम्बत् ही था । लेखों के साक्ष्य के आधार पर हम इतना ही जानते हैं कि ५७ ई० पू० में प्रथतित सम्वत् कः सौ तक कृत सम्वत् या मालव सम्बल के नाम से प्रचलित रहा । बहुत देर के बाद ( ०० ० के लगभग ) यह सम्बत् विक्रम सम्वत् से प्रसिद्ध हुआ ।
(घ) नवरत्नों में कालिदास के नाम के साथ अमरसिह और वराह