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रघुवा
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के पास खड़ी हुई पार्वती सिर नीचा करके उनको सब बातें सुनती रही। पार्वती के पिता ने पार्वती की माता से पूछा कि तुम्हारी क्या सम्मति है, क्योंकि कन्याओं के विषय में गृहस्थ लोग प्राय: अपनी पत्नियों की अनुमति पर चलते हैं। पार्वती की माता तुरन्त स्वीकार कर लेती है । ( षष्ठ सर्ग ) 1 राजवैभव के अनुसार विवाद की तैयारियाँ होने बगों और बड़ी शान के साथ विवाद हुआ। कवि पार्वती की माता के हर्ष - विषाद के मिश्रित भावों का बड़ी विशदता के साथ वर्णन करता है ( सप्तम सर्ग ) । इस सर्ग में काम शास्त्र के नियमानुसार शिव-पार्वती की प्रेमलीला का विस्तृत वर्णन है ।
हमें श्रानन्दवर्धन ( ३, ७ ) से मालूम होता है कि समालोचकों ने जगत् के माता-पिता ( शिव-पार्वती ) के सुरत का वर्णन करना अच्छा नहीं माना. कदाचित् इस आजिचना के कारण ही कालिदास ने आगे नहीं लिखा और ग्रन्थ को कुमार के जन्म के साथ ही समाप्त कर दिया । 'कुमार सम्भव' नाम भी यही सूचित करता है। ऐसा मालूम होता है कि कवि की मृत्यु के कारण यह प्रन्थ अपूर्ण नहीं रहा; क्योंकि यह माना जाता है कि रघुवंश कवि की प्रोंदावस्था की रचना है और इसी की तरह अपूर्ण भी है ।
बाद के सगों में कहानी को ग्रन्थ के नाम द्वारा सूचित होने वाले स्थल से आगे बढ़ाया गया है। युद्ध के देवता स्कन्द का जन्म होता है । वह युवा होकर अद्वितीय पराक्रमी वीर बनता है । अन्त में जाकर उसके द्वारा तारकासुर के पराजित होने का वर्णन है ।
(७) रघुवंश - यद्द १६ सर्ग का महाकाव्य है और विद्वान् मानते हैं कि कवि ने इसे अपनी प्रौढ़ावस्था में लिखा था । यद्यपि कथानक लगभग वही है जो रामायण और पुराणों में पाया जाता है, तथापि कालिदास की मौलिकता और सूक्ष्म-ईक्षिका दर्शनीय हैं । ग्रन्थ महाराज दिलीप के वर्णन से प्रारम्भ होता है। दिलीप के अनेक गुणों का वर्णन किया गया है। दुर्भाग्य से एक बार महाराज इन्द्र को गौ सुरभि का