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कुमार सम्भव
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है: क्योंकि इससे हमें कालिदास के समय की कई भौगोलिक बातों का परिचय मिलता है ।
(६) कुमारलम्वभ ---यह एक महाकाव्य है जिसमें १७ सर्ग हैं। इनमें से १७ तक के सर्ग बाद के किसी लेखक की रचना है ' । जैसा कि नाम से प्रकट होता है इसमें शिव-पार्वती के पुत्र कुमार कार्तिकेय के जन्म का वर्णन है, जिसने देवताओ के पीड़क और संसार के प्रत्येक रम्य पदार्थ के ध्वंसक तारक दैत्य का वध किया था। प्रथम सगं में हिमालय का परम रमणीय वर्णन है । किनर और किरियाँ तक
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हिमालय के अन्दर रंगरेलियाँ करने के लिये आती हैं। शिव की भवित्री श्रर्द्धाङ्गिनी पार्वती ऐसे ही हिमालय में जन्म ग्रहण करती है और अद्भुत लावयवती युवती हो जाती है। यद्यपि पार्वती युवती हो चुकी है, 'तथापि उसका पिता शिव मे उसका वाग्दान स्वीकार करने की अभ्यर्थना करने का साहस नहीं कर सका; उसे डर था कहीं ऐसा न हो कि शिव उसके प्रणय का प्रतिषेध कर दे
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अभ्यर्थनाभङ्गमयेन साधु र्माध्यस्थ्यमिष्ट ऽप्यवलम्बतेऽर्थे ।
वरप्रदाता ही है,
इन सब बातों के समक्ष पार्वती का पिता पार्वती को कुछ सखियों के साथ जाकर शिव की सेवा में उपस्थित होंने और उसकी भक्ति करने की अनुज्ञा दे देता है ( प्रथम सर्ग ) । इसी बीच में देवता तारकासुर से त्रस्त होकर ब्रह्मा के पास जाते हैं और सहायता की याचना करते हैं । ब्रह्मा भी लाचार है, वह तो तारकासुर का अपने जगाए हुए विषवृक्ष का भी काटना संकट मोचक तो केवल पार्वती गर्भ-जात है ( २ य सर्ग ) । इन्द्र कामदेव को याद करता है करता है कि यदि मेरा मित्र वसन्त मेरे साथ चले तो मैं शिव का व्रत भंग कर सकता हूं । वसंत के शिव के तपोवन में जाने पर सारी प्रकृति पुनरुच्छसित हो उठती है; यहाँ तक कि पशु और पक्षी भी मन्मथो
उचित
नहीं है। देवों का
शिव का
पुत्र ही हो सकता
। कामदेव प्रतिज्ञा
१ देखिये खण्ड १६ ।