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सस्कृत-साहित्य का इतिहास यथोचित प्रादुर मकर पाए, जिससे उसने उन्हे निश्पस्थ होने का शाप दे दिया। इस शाप की शक्ति केवल सुरभि को सुखा नन्दिनी से प्राम किए हुए एक बर से ही नष्ट हो सकती थी (मलग)। वसिष्ठ के उपदेश से दिलीप ने बन में नन्दिनी की सेवा को एक बार एक सिह ने नन्दिना के ऊपर आमना करना चाहा। राजा दे सिंह से प्रार्थना की कि तुम मेरे शरीर से अपना पेट भर कर इस गान को छोड़ दो। इस प्रकार उसने अपनी बच्ची भक्ति का परिचय दिया। सिंह कोई सच्चा सिंह नहीं ५, वह महादेव का एक सेवक था और पाजा को परीक्षा ले के लिए भेजा गया था। अब राजा को नन्दिनी ले अभीष्ट वर मिल गया (य सर्ग)। राजा के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ,सका नाम रघु रक्खा गया । रघु के हसपन का वर्णन है। जब वह युवा हो गया तब राजा ने उसे अश्वमेघ के घोड़े की रक्षा का भार सौपा। रघु को घोड़े को रक्षा के लिये इन्द्र तक से युद्ध करना पड़ा (३यप्लग) । दिलीप के पश्चात् रघु गद्दी पर बैठा । अब उसकी दिग्विजय का संक्षिप्त किन्तु बड़ा ओजस्वी वर्णन भाता है। दिग्विजय के बाद उसने विश्वजित् यज्ञ किया, जिसमें विजयों में प्राप्त सारी सम्पत्ति दान में दे दी, 'प्रादानं हि विसर्गाय समां बारिमुचामिय' (४) सन)। औदार्य के कारण रघु अकिंचन हो गया। जब कोरसमुनि दान मांगने के लिये उसके पास आये तो वह किंकर्तव्यविमूढ हो गया । कुबेर की समयोचित सहायता ने उसकी कठिनता को दूर कर दिया। उसके एक पुत्र हुअा। उसका माग अज रक्खा गया (श्म सर्ग)। तब इन्दुभतो के स्वयंवर का वर्णन आता है। कोई न कोई बहाना बनाकर अनेक राजकुमारों को बरने से छोड़ दिया जाता है। एक वीर राजकुमार को राजकुमारी केवल यह कहकर नापसन्द कर देती है कि प्रत्येक की अभिरुचि पृथक् पृका है। अन्त में अज का वरण हो जाता है। (ष्ठ सगं) । विवाह हो जाता है। स्वयं. वर में हार खाए हुए राजा वर-पात्रा पर आक्रमण करते हैं. किन्तु अज अपने अद्भुत वीर्य-शौर्य द्वारा उनको केवल मार भगाता है और दया करके
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