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पुण
पुराणों के श्लोकों और प्रकरणों के लिए 'अति' 'क' भू' जैसे शब्दों का व्यवहार होता है और वेद के समान वे भी ईश्वरीय ज्ञान होने का दावा करते हैं। उनमें से कई अपने आपको 'वेद सस्मित' (वेद तुत्य ) भी कहते हैं। यह भी कहा गया है कि उनके अध्ययन ने वेदाध्ययन के तुल्य, या उससे भी अधिक पुण्य की प्राप्ति होती है।
(5) पुराणों में इतिहास-निम्नलिखित पुराणों में उन राजवंशों का वर्णन है जिन्होंने कझियुग में भारत में राज्य किया है----
(१) मत्स्य, वायु और ब्रह्माण्ड ---इन तीनों पुराणों के वर्णनों में अद्भुन समानता है। अन्त के दो तो आपस में इतने मिलते हैं कि वे शुक ही प्रन्थ के दो संस्करण प्रतीत होते हैं। मत्स्य पुराण में भी, उतभी नहों तो बहुत कुछ इन दोनों से मिलती जुलती हो वाते हैं। ऐसा मालूम होता है कि इन संस्करणों का.. श्राबार कोई एक पुराना अन्य था । पद्य प्रायः ऐतिहासिक महाकाव्य की शैली के हैं, एक पंक्ति में प्राय: एक राजा का वर्णन है।
(२) विष्णु और भगवत-उक्त तीनों की अपेक्षा ये दोनों अधिक संक्षिस है । विष्णु प्रायः गद्य में है। ऐसा मालूम होता है कि ये दोनों संसित संस्करण हैं !
(३) गरुड़-यह बाद का ग्रन्थ है और मागवत की अपेक्षा संक्षित है। इसमें पुरु, इक्ष्वाकु और बृहद्रथ राजवंशों का वर्णन है। क्षत्रियों के विचारानुसार प्राचीन भारत की राजनैतिक अवस्था का पता जग जाता है।
४) भविष्य-इस में प्रायः वंशों का विकृत वर्णन है । यथा, इसमें कहा गया है कि प्रत्येक पौरव नृप में कम से कम एक सत्र वर्ष तक राज्य किया। इसमें ईसा की १६ वीं शताब्दी तक की भविष्य वाणियों है।
इन पुराणों के वर्णन मुख्य करके भविष्य पुराण के असती रचयिता के वर्णनों पर आश्रित हैं । ये वर्णन चे हैं जो नैमिषारण्य में