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अध्याय (५) (१८) कौटल्य का अर्थशास्त्र। (क) अर्थशास्त्र का महता- कौटम का अर्थ शास्त्र उन अन्धों में सबसे अधिक महत्वशाली अन्ध है जिन्हें लिखकर दक्षिण भारतीयों में संस्कृत साहित्य की सेवा की है। जब में इसका पता लगा है तब से प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता के सम्बन्ध में हमारे विचार कान्ति के क्षेत्र बन गया है। इसका पता लगने से पहले भारतीय राजनीतिशास्त्र में शून्य समझ जाते थे। शाम राय यह थी कि भातीय सभ्यता ने केवद्ध विचार क्षेत्र में ही चमत्कार दिखनाया है क्रिया' क्षेत्र में यह बुरी तरह असफल रही । कोटल्य के अर्थशास्त्र में राज्य-सिद्धान्तों का ही नहीं, प्रशन्ध की सूम बातों का भी वर्णन है। इसका विषय क्षेत्र बहुत विस्तीर्ण है। इससे हमें राजा के विविध कर्तव्यों का, गाँवों के अमाने की गलियों का, भूमि, खेती और व्यापार की समस्याओं का, कलाओं और शिल्पों को उन्नत करने की वधियों का, मद्य इत्यादि सरकारी वस्तुओं पर नियन्त्रण रखने का, जाला और खामों (Mines, से लाभ उठाने के डाका, सिंचाई का, श्रकाक्ष में किए जाने वाले कामों का, अपराधियों को दशा देने के विधाम का, तथा इसी प्रकार की और अनेक बातों का पता लगता
१. दाक्षिणात्यो के कुछ अन्य उल्लेखनीय ग्रन्थ है:-~-भास के तेरह नाटक, भामह का भामहालंकार, और अवन्तिसुन्दरी कथा ।